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दिल्ली के ‘तीरथ’ से उलझन में उत्तराखण्ड

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देहरादून। मुख्यमंत्री तीरथ रावत के दिल्ली दौरे के बीच आम आदमी पार्टी ने गंगोत्री विधान सभा से कर्नल अजय कोठियाल को गंगोत्री उपचुनाव को लेकर अपना उम्मीदवार घोषित किया है। आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बाकायदा ट्वीट कर उन्हें शुभकामनाएं भेजी है। आम आदमी पार्टी ने कर्नल कोठियाल को ऐसे समय में गंगोत्री उपचुनाव में उम्मीदवार घोषित किया जब प्रदेश में उपचुनाव कराने को लेकर संशय बना हुआ है। आम आदमी पार्टी ने ऐलान किया है कि कर्नल कोठियाल मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरेंगे।

गंगोत्री से कर्नल कोठियाल के उम्मीदवारी को लेकर प्रवक्ता पिरशाली कहते हैं कि गंगोत्री उपचुनाव में मैदान में उतरने का मकसद प्रदेश के नक्कारे मुख्यमंत्री और उसके कुशासन से छुटकारा दिलाना है। उन्होंने का कि आम आदमी पार्टी का लक्ष्य उत्तराखण्ड का नवनिर्माण करना है। उन्होंने कहा कि भाजपा को 57 विधायकों में से एक भी काबिल विधायक मुख्यमंत्री पद के लिए नहीं मिला। तभी पार्टी ने गैरविधायक तीरथ सिंह रावत को बनाया लेकिन वे अभी तक चुनाव मैदान में उतरने का साहस नहीं जुटा पाये हैं।

उधर सीएम तीरथ सिंह रावत दिल्ली में डेरा जमाये हुए है। भाजपा आलाकमान ने उनको दिल्ली तलब किया है। सीएम तीरथ के आलोचक और समर्थक उनके दिल्ली दौरे को लेकर अपने-अपने मायने निकाल रहे हैं। सोशल मीडिया में तरह-तरह की अटकले गौते खा रही हैं।

हाल ही में देश के जाने माने पोर्टल द प्रिण्ट ने उत्तराखण्ड के सियासी हालातों पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें पोर्टल ने लिखा है कि गैर-निर्वाचित मुख्यमंत्री तीरथ रावत के लिए पद पर बने रहने में कई बाधाएं हैं, और समय तेजी से गुजर रहा है। नियमों के मुताबिक, लोकसभा सांसद तीरथ सिंह रावत के पास इस्तीफा देने और विधानसभा सदस्य चुने जाने के लिए केवल 10 सितंबर तक का समय है, क्योंकि राज्य में कोई विधान परिषद नहीं है।

चुनाव आयोग के सूत्रों ने कहा कि उत्तराखंड में उपचुनाव कराने में एक और समस्या यह है कि चुनाव निकाय को 25 अन्य विधानसभा सीटों, तीन संसदीय सीटों और एक राज्यसभा सीट पर चुनाव कराना होगा, जिसे महामारी के कारण लंबित रखा गया है। खाली सीटों में से छह उत्तर प्रदेश में हैं, जहां 2022 में उत्तराखंड के साथ विधानसभा चुनाव होने हैं।

जानकारों के मुताबिक अब चुनाव कराना निर्वाचन आयोग पर निर्भर है। उपचुनाव कराना पूरी तरह से निर्वाचन आयोग पर निर्भर करता है लेकिन नियम स्पष्ट हैं कि कोई भी मंत्री 164 (4) को दरकिनार कर दूसरी बार शपथ नहीं ले सकता। सुप्रीम कोर्ट ने 2001 के अपने एक फैसले में कांग्रेस के एक मंत्री की सदस्यता को रद्द कर दिया था जिसने छह महीने का कार्यकाल पूरा होने के बाद दूसरी बार शपथ ली थी।

वहीं उत्तराखण्ड के जाने माने पत्रकार जय सिंह रावत राष्ट्रीय सहारा में छपे अपने लेख के जरिये बताते हैं कि प्रदेश में सांविधानिक संकट की नौबत आ गई है। जय सिंह रावत लिखते है कि क्योंकि मुख्यमंत्री बने रहने के लिये तीरथ सिंह रावत को 9 सितम्बर तक उप चुनाव जीत कर विधानसभा की सदस्यता ग्रहण करनी ही होगी और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 151 ए के अनुसार फिलहाल उत्तराखण्ड में उपचुनाव कराना संभव नहीं है। इस स्थिति में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के स्थान पर या तो नया मुख्यमंत्री नियुक्त करना होगा या फिर विधानसभा भंग कर चुनाव तक राष्ट्रपति शासन की व्यवस्था करनी होगी।

इस सबके बीच प्रदेश में सियासी गलियारों में चर्चाओं का बाजार गरम हैं। भाजपा के बड़े नेता उपचुनाव को लेकर अपने दावे कर रही हैं। प्रदेश में विपक्षी पार्टी सीएम के उपचुनाव में आने वाली बाधाओं को मुद्दा बना कर पेश कर रही है। कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा ने प्रदेश को सांविधान संकट को ओर धकेल दिया हैं। फिलहाल सीएम तीरथ का बढ़ता दिल्ली प्रवास का समय प्रदेश में कई सवालों को खड़ा कर रहा है।

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