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श्री गुरूराम रामराय विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर उदय सिंह रावत से खास बातचीतः

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रिपब्लिक संदेश डाॅट काम की श्री गुरूराम रामराय विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर उदय सिंह रावत से खास बातचीतः
वाइस चांसलर प्रो० उदय सिंह रावत

उत्तराखण्ड राज्य को वजूद में आये तकरीबन बीस साल का अरसा बीत चुका है। इन बीस सालों में उत्तराखण्ड दस मुख्यमंत्री बदल चुका है। लेकिन जिस सपने को लेकर उत्तराखण्ड राज्य को बनाया गया था वो आज भी अधूरा है। राज्य बनने के बाद लोगों का पलायन बदस्तूर जारी है। स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में भी यहां के लोगों को देहरादून और हल्द्वानी जैसे शहरों को रुख करना पड़ता है। संचार और यातायात साधनों के मामले में प्रदेश अभी भी काफी पिछड़ा हुआ है। विकास के नाम पर पहाड खोखले हो रहे हैं। बुनियादी शिक्षा की बात करें तो प्रदेश का सबसे बड़ा विभाग होने के बाजवूद भी यहां की शिक्षा व्यवस्था पटरी पर नहीं लौट पाई हैं। पहाड़ में तमाम इण्टर कालेज ऐसे है जो प्रधानाचार्य विहीन चल रहे है। विषयों के अध्यापक नहीं है।

इन सब बुनियादी मुद्दों और उत्तराखण्ड के व्यवस्थित विकास को लेकर हमने श्रीगुरूराम राय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो० उदय सिंह रावत चर्चा की। प्रो० उदय सिंह रावत उत्तराखण्ड से ताल्लुक रखने वाले बड़े शिक्षाविद् हैं। वे श्रीदेवसुमन विश्वविद्यालय, बादशाहीथौल, टिहरी गढ़वाल में लगातार दो कार्यकाल तक कुलपति रहे हैं। वे हे०न०ब० केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलसचिव रहे हैं। शिक्षा के क्षेत्र में उनका 40 साल से ज्यादा समय का अनुभव है।

कुलपति प्रो० उदय सिंह से बातचीत करते रिपब्लिक संदेश डाॅट काॅम के सम्पादक कैलाश सिंह भण्डारी

प्रो०रावत के शोध पत्र तमाम राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रों में प्रकाशित हो चुके हैं। वे शिक्षा के साथ सामाजिक सरोकारों में भी खासी रुचि रखते हैं। उत्तराखण्ड के अव्यवस्थित विकास को लेकर उनमें एक चिंता नजर आती हैं। पहाड़ और पहाड़वासियों के विकास के लिए उनका एक विजन है। इसको लेकर उन्होंने अपने बेबाक विचार रखे हैं। पेश हैं उनसे हुई चर्चा के कुछ अंश-

रिपब्लिक संदेशः उत्तराखण्ड में पलायन एक बड़ा दंश है, बड़ी वजह क्या है?

प्रो० रावतः बहुत सारी वजहें हैं पलायन की। पहाड़ों में आज भी पर्याप्त संचार और यातायात के साधन नहीं हैं। देश दुनिया 5जी की ओर जा रही है लेकिन पहाड़ों के अधिकांश हिस्सों में अभी भी मोबाइल के सिग्नल नहीं मिलते। सड़कों की ही बात कर लें तो एक बड़ा क्षेत्र अभी भी सड़क सुविधा सें वंचित हैं। जोशीमठ के विरीही क्षेत्र को आप उदाहरण के तौर पर देख सकते हैं। जोशीमठ से आगे सरकार अभी तक रोडवेज की सेवा मुहैया नहीं करा पाई है।

रिपब्लिक संदेशः लेकिन गांव-गांव को जोड़ने के लिए सरकार ने सड़क योजनाएं बनाई है, आल वेदर रोड काम चल रहा है?

प्रो० रावतः जी बिल्कुल, सड़कें विकास की लाईफलाइन होती हैं। लेकिन ये विकास हमें किस कीमत में मिल रहा है? ये भी समझना होगा। विकास के नाम पर जंगलों का अंधाधुंध कटान हो रहा है। सड़क निर्माण के नाम में बेलगाम विस्फोट से पहाड़ खोखले हो रहा हैं। सड़क चैड़ीकरण के नाम पर पहाड़ों को खोदा जा रहा है। नतीजा हम सबके सामने हैं। भूस्खलन से जगह-जगह पर सड़कें ब्लाॅक हैं। दैवीय आपदा की खबरें जब-तब मीडिया की सुर्खियों में छायी रहती है। विकास होना चाहिये लेकिन पर्यावरण की कीमत पर तो कतई नहीं। विकास कार्यों या सड़कों के निर्माण के लिए यदि जंगलों का कटान किया भी जाता है तो वृक्षारोपरण भी उसी स्तर पर होना चाहिए।

रिपब्लिक संदेशः पर्यावरण पर जंगलों के अंधाधुध कटान और दूसरे निर्माण कार्यों से किस तरह का असर देखने को मिला हैं।

प्रो० रावतः बेलगाम जंगलों और पहाड़ों से अनावश्यक छेड़छाड़ से उत्तराखण्ड में कई तरह की दिक्कतें सामने नजर आने लगी हैं। इसने पर्यावरण के पूरे चक्र को ही बदल दिया है। पहले भूस्खलन और बादल फटने जैसी दैवीय आपदा की घटनाएं बरसात के मौसम सुनने-देखने को मिलती थी। लेकिन आप 2013 की केदारनाथ आपदा को ही ले तो ये पीक गर्मी में घटित हुई। ज्यादा दूर क्या जाना उत्तराखण्ड में हाल में मई के महीने में ही उत्तराखण्ड के अधिकांश हिस्सों में बादल फटने की घटनाएं हुई हैं। जिससे ग्रामीणों को काफी नुकसान हुआ है। अनावश्यक विस्फोट से उत्तराखण्ड के परंपरागत नौले-धारे सूखने लगे हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में पेयजल की समस्या सामने आने लगी है।

रिपब्लिक संदेशः तो विकास कार्य बंद कर दिये जाने चाहिए?

प्रो० रावतः ऐसा नहीं है। विकास होना चाहिए सड़कें, नहरें, बांध बनने चाहिए। इसके लिए सतत् विकास की प्रक्रिया को अपनाया जाना चाहिए। विकास कार्यों में पर्यावरणविद्ो और विशेषज्ञों की सलाह को तवज्जो दी जानी चाहिए। यदि विशेषज्ञों की राय को तवज्जो दी जाती है तो जोशीमठ के रैणी गांव जैसी भीषण आपदा नहीं आती। इस तरह का विकास तो किसी को भी मंजूर नहीं होगा। आज वहां ना तो डैम बचा है उल्टा इस गांव के अस्तित्व को ही खतरा पैदा हो गया है।

रिपब्लिक संदेशः इसके लिए आप राजनैतिक इच्छा शक्ति को कितना जिम्मेदार मानते है?

प्रो०रावतः किसी भी देश-प्रदेश की तरक्की में मजबूत राजनैतिक इच्छाशक्ति की बड़ी भूमिका होती है। विकास का पहिया राजनैतिक इच्छाशक्ति के ही इर्द-गिर्द घूमता है। यदि राजनैतिक इच्छाशक्ति मजबूत है, नेताओं में विकास को लेकर दूरगामी सोच है तो प्रदेश का मजबूती विकास होगा। पडोसी राज्य हिमाचल प्रदेश इसका एक बड़ी मिसाल है।

रिपब्लिक संदेशः फिर मैं बहुत कुछ अपने पहले वाले सवाल पर आ रहा हूं, हिमाचल में पलायन और बेरोजगारी की वैसी समस्या नहीं जैसी उत्तराखण्ड में हैं?

प्रो० रावतः प्रदेश की नीति-नियंताओं को हिमाचल और जम्मू कश्मीर जैसे हिमालयी राज्यों की तर्ज पर विकास माॅडल बनाना चाहिए। उत्तराखण्ड भी इन हिमालयी राज्यों की तरह ही प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है। हमें कृषि और बागवानी के क्षेत्र में स्वरोजगार के साधन विकसित करने चाहिए हैं। साथ ही कृषि और बागवानी आधारित उद्योगों को विकसित करना चाहिए। इसके लिए नेताओं में नेकनीयत और भ्रष्टाचार रहित शासन की आवश्यकता है।

रिपब्लिक संदेशः तो इसका मतलब प्रदेश के संतुलित विकास के लिए भ्रष्टाचार एक बड़ा रोड़ा है?

प्रो० रावतः भ्रष्टाचार एक दीमक के माफिक होता है, जो विकास को चट कर जाता है। प्रदेश के लिए लाखों करोड़ों की विकास योजनाएं बनती हैं लेकिन भ्रष्टाचार के चलते प्रदेश के लोगों को इसका फायदा नहीं मिल पाता है। जहां-तहां आपको इसके उदाहरण मिल जाएंगे। जिसके चलते प्रदेश में अस्पतालों में डाक्टर नहीं है, स्कूलों में शिक्षक नहीं है। सड़के जो बनाई गई हैं वो एक बरसात में ही दम तोड़ देती हैं।

रिपब्लिक संदेशः तो इस भ्रष्टाचार को कैसे खत्म किया जा सकता है?

प्रो० रावतः देखा गया है लोग राजनीति को बुरी चीज समझते हैं। और स्वच्छ छवि के लोग राजनीति में आने सें कतराते हैं। लेकिन हाल के वर्षों में देखने को मिला कि राजनीति में अपने-अपने क्षेत्रों में नाम कमाने वाले स्वच्छ छवि के लोग राजनीति में प्रवेश कर रहे है। ये लोग अपने देश समाज के लिए योगदान देना चाहते हैं, जो एक अच्छा संकेत है। डाक्टर इंजीनियर वकील, शिक्षाविद्, अर्थशास्त्री राजनीति में कदम रख रहे हैं। राजनीति में ऐसे विशेषज्ञों के आने से निश्चित तौर पर राजनीति की छवि सुधरेगी।

छात्र राजनीति में दखल रखने वाले नौजवानों का भी मुख्यधारा की राजनीति में स्वागत किया जाना चाहिए है। ये ऊर्जावान नौजवान हैं। जब राजनीति में ईमानदार, विद्वान और ऊर्जावान लोग नीति नियंता होगे तो निश्चित तौर पर इसका लाभ समाज को मिलेगा।

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