Home उत्तराखंड वेबीनारः सतत् विकास के लिए बागवानी और जैवविविधता पर करना होगा फोकस

वेबीनारः सतत् विकास के लिए बागवानी और जैवविविधता पर करना होगा फोकस

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देहरादून। शुक्रवार को उत्तराखण्ड अन्तरिक्ष उपयोग केन्द्र (यू-सैक) द्वारा हिमालयन नॉलेज नेटवर्क (एच.के.एन) विषय पर एक परामर्श वेबिनर का आयोजन किया गया। वेबिनार में उत्तराखण्ड राज्य में स्थित विभन्न शोध संस्थानों के वैज्ञानिको, विश्वविधालय के प्राध्यापकों, विभिन्न रेखीय विभागों एवं गैर-सरकारी संगठनों के अधिकारियों व परियोजना प्रबंधकों द्वारा प्रतिभाग किया गया। इस वेबीनार का लक्ष्य उत्तराखण्ड राज्य के सतत विकास के लिए प्राथमिकता वाले किन्हीं दो विषयगत क्षेत्रों की पहचान करना था।

वेबीनार में यू-सैक के निदेशक प्रो० एम०पी०बिष्ट ने यू-सैक द्वारा किए जा रहे कार्यलापों की जानकारी देते हुए रिमोट सेंसिंग व भौगोलिक सूचना प्रणाली तकनीकी से सृजित एवं एकत्रित सूचनाओं के बारे में अवगत कराया। उन्होंने बताया कि सूचना का साझाकरण व उनको उचित समय पर नीति निर्धारण कर्ताओं को पहुँचाना अति आवश्यक है।

प्रोफेसर बिष्ट ने बताया कि हिमालयन नाॅलेज नेटवर्क विभिन्न नेटर्वकों से मिलकर बना एक विस्तृत एवं भव्य ज्ञान के माध्यम के रूप में विकसित होने जा रहा है।

वेबीनार में हिमालयन नाॅलेज नेवटर्क के नोडल अधिकारी डा० जी०सी०एस० नेगी, वरिष्ठ वैज्ञानिक जी०बी० पंत पर्यावरण संस्थान, अल्मोडा, द्वारा विस्तृत जानकारी देते हुये बताया कि पर्वतीय क्षेत्रों में अनेक पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं जैसे कृषि, ग्लेशियरों, कार्बन सिंक वैल्यू, सांस्कृतिक एवं जैविक विविधता के क्षेत्रों में समृद्ध होने के बावजूद भी पर्वतीय क्षेत्रों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है।

उन्होंने बताया पर्यावरण विकास के क्षेत्र में सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र में 145 से अधिक विश्वविद्यालय 2000 से अधिक प्रोफेसर व 500 से अधिक वैज्ञानिक कार्यरत है, फिर भी विभिन्न संस्थानों में सूचना की सीमित साझेदारी है।

कार्यक्रम में यू-सैक के वैज्ञानिक एवं उत्तराखण्ड राज्य के एच०के०एन० परियोजना के नोडल अधिकारी डा० गजेन्द्र सिंह ने बताया कि यू-सैक द्वारा राज्य इकाई के रूप में विभिन्न संस्थानों, रेखीय विभागों ,एजेन्सीयों के पास उपलब्ध सूचना व आंकड़ों के आधार पर उत्तराखण्ड राज्य के लिये दो प्राथमिकता वाले विषयगत क्षेत्रों के लिये दस्तावेज तैयार करना है। उन्होंने राज्य में पानी की कमी, जैव-विविधता हरास, वनाग्नि, भूस्खलन, जलवायु परिवर्तन, रिस्पोंसिव टूरिज्म, कृषि क्षेत्रों के कम होने आदि अनेक चुनौतियों से अवगत कराया।

कार्यक्रम में परिचर्चा की अध्यक्षता करते हुये भारतीय वन्यजीव संस्थान के पूर्व निदेषक डा०जी०एस०रावत ने उत्तराखण्ड राज्य में विभिन्न चुनौतियों पर विभिन्न संस्थानों, रेखीय विभागों व गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों द्वारा दिये गये सुझावों को सूचीबद्ध किया।

वेबीनार का संचालन कर रहे यू-सैक के वैज्ञानिक शशांक लिंगवाल ने परामर्श कार्यशाला के निष्कर्ष से अवगत कराते हुये बताया कि एग्री हार्टीकल्चर डेवलपमेंट, डिजास्टर रिस्क रिडक्षन, रिस्पोंसिव टूरिज्म व जैव विवधता विषयों को चिन्हिंत किया गया है। जिसे कि नीति-निर्धारकों की अनुमति उपरान्त विषयगत दस्तावेजीकरण कर नीति आयोग को प्रदान किया जायेगा।

वेबीनार में एस०एस० रसैली- ए०पी०सी०सी०एफ०, आर०एन०झा.- सदस्य सचिव जैवविविधता बोर्ड, प्रो० एस०के० गुप्ता -एचएनबी गढवाल विष्वविद्यालय, प्रो० ललित तिवारी- कुमाऊं यूनिवर्सिटी, डा० अविनाश आनन्द- सीईओ- भेड एवं ऊन विकास परिषद, पूनम चंद- पर्यटन विभाग, डा० राजेश खुल्बे- आईसीएआर., डा० मंजू सुन्द्रियाल- यूसर्क, डा० किरण नेगी- हेस्को, डा० पंकज तिवारी- आरोही, डा० संदीप भट्ट- आई.आई.टी, रूडकी, डा० पंकज जोषी- डब्लू.डब्लू.एफ, डा० वी.आर.एस. रावत- एफ.आर.आई., डा० प्रियदर्शी उपाध्याय, डा० अरूणा रानी, डा० सुषमा गैरोला, पुष्कर कुमार, आर.एस. मेहता, सुधाकर भट्ट, नवीन चन्द्र, संजय द्विवेदी, कु0 सोनम बहुगुणा, कु0 भावना फर्सवाण ने प्रतिभाग कर परिचर्चा की।

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