देहरादून। निसंदेह ही प्रदेश सरकार के बीते साढ़े तीन सालों में स्वास्थ्य इंतजामों व जागरूकता के क्षेत्र में आमूल मूल परिवर्तन हुए हैं। अपवाद स्वरूप छोड़ दें तो यहां यह गर्भवती माताओं की प्रसव काल का रिस्क शून्य की ओर है। इसके लिए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की सरकार बधाई की पात्र है। खासतौर पर इसलिए क्योंकि इस दौरान उत्तराखंड राज्य ने मातृ मृत्यु दर में प्रसंशनीय सुधार हुआ है। सीएम त्रिवेंद्र की संवेदनशीलता और तंत्र को मिले सख्त निर्देशों के बूते सरकार के प्रयास धरातल पर उतरे और यहां गर्भवती धात्री माताओं की जान के जोखिम में अप्रत्याशित गिरावट लाई गई है। सैंपल रजिस्ट्रेशन प्रणाली यानी एसआरएस ने इसकी पुष्टि की है। इसके लिए त्रिवेंद्र सरकार अखिल भारतीय स्तर पर पुरस्कृत भी हुई है। यह अपने आप में बहुत बड़ी बात है।
एसआरएस की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार मातृ मृत्यु अनुपात में सर्वाधिक गिरावट दर्ज करने में उत्तराखंड देश का पहला राज्य है। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2014-16 में मातृ मृत्यु प्रति एक लाख जीवित जन्म पर 201 थी। जो 2019 में घटकर 89 पर आ गई है। देश के शीर्ष 19 राज्यों की तुलना में उत्तराखंड ऐसा प्रदेश है जहां मातृत्व मृत्यु दर पर सर्वाधिक 56 प्रतिशत की गिरावट आई है। यह सुखद प्रदर्शन स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की स्थितियों का साफ करता है।
केंद्र के रजिस्ट्रार जनरल कार्यालय की ओर से जारी एसआरएस रिपोर्ट में राज्यों की तीन अलग-अलग श्रेणियों में मातृ मृत्यु सूचकांकों की आकलन किया गया। इसमें एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप में शामिल नौ राज्यों में उत्तराखंड सबसे बेहतर रही। जाहिर तौर पर इसके लिए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और उनकी सरकार बधाई की पात्र हैं, जिन्होंने बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं व जागकता के बूते इस बेहद संवेदनशील मामले की गंभीरता समझते हुए इस जोखिम को कम कर दिया है।