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बागेश्वर में खड़िया खनन पर उच्च न्यायालय की रोक –उत्तराखंड में साफ-सुथरे शासन के दावों की खुली पोल !

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इन्द्रेश मैखुरी

उत्तराखंड उच्च न्यायालय, नैनीताल ने संपूर्ण बागेश्वर जिले में खड़िया खनन पर अग्रिम आदेशों तक रोक लगा दी है. यह आदेश उत्तराखंड उच्च न्यायालय, नैनीताल के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने 06 जनवरी 2025 को एक जनहित हित याचिका पर सुनाया. यह गौरतलब है कि बागेश्वर जिले की तहसील कांडा के कुछ गांवों में बेतहाशा खड़िया खनन के चलते घरों के धंसने, खेतों में दरारें आने और जलस्रोतों के सूखने संबंधी खबरों के मीडिया में सामने आने के बाद उच्च न्यायालय, नैनीताल ने 07 नवंबर 2024 को उक्त मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका के रूप में सुनने का फैसला किया था.

इस मामले में उच्च न्यायालय ने दो अधिवक्ताओं- मयंक राजन जोशी और शारंग धूलिया को कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया. कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किए गए अधिवक्ताओं द्वारा अपनी रिपोर्ट उच्च न्यायालय को सौंपने के बाद तीन पन्ने के आदेश में बागेश्वर जिले में खड़िया खनन पर रोक लगाते हुए उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने लिखा कि कोर्ट कमिश्नरों की रिपोर्ट न केवल हतप्रभ करने वाली बल्कि चिंताजनक है. न्यायालय ने लिखा कि रिपोर्ट और उसमें दिये गए फोटोग्राफ, खनन करने वालों द्वारा कानून की धज्जियां उड़ाने और स्थानीय प्रशासन द्वारा उनकी तरफ से आंख फेर लेने की बात को स्पष्ट बयान करते हैं. न्यायालय ने लिखा कि रिपोर्ट और फोटोग्राफ प्रथम दृष्ट्या यह बताते हैं कि पहले ही खनन से आवासीय भवनों को बहुत नुकसान पहुँच चुका है और अब भी खनन जारी रहा था तो भूस्खलन व जनहानि होना निश्चित है. न्यायालय ने कहा कि यह भी विडंबना है कि प्रशिक्षित अफसरों ने पहाड़ी के तलहटी में खनन कार्यों की अनुमति दे दी जबकि पहाड़ी के ऊपर राजस्व गांवों में लोगों की बसासत है. भूस्खलन के संभावित खतरे और जानमाल को होने वाले नुकसान के अंदेशे को देखते हुए उच्च न्यायालय ने तत्काल प्रभाव से अग्रिम आदेशों तक बागेश्वर जिले में खड़िया खनन पर रोक लगा दी है.

इस मामले की अगली सुनवाई की तिथि 09 जनवरी 2025 को नियत की गयी है. उच्च न्यायालय द्वारा उक्त तिथि पर भूगर्भ एवं खनन विभाग के निदेशक, औद्योगिक सचिव और बागेश्वर के जिलाधिकारी को व्यक्तिगत रूप से अदालत में प्रस्तुत रहने को कहा गया है.

क्या कहती है कोर्ट कमीश्नरों की रिपोर्ट :
जैसा कि पूर्व में उल्लेख किया जा चुका है कि बागेश्वर जिले में बेतहाशा खनन के मामलों का स्वतः संज्ञान लेते हुए उच्च न्यायालय ने इस मामले में दो अधिवक्ताओं- मयंक राजन जोशी और शारंग धूलिया को जमीनी हालात की जांच करने के लिए कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया था. उक्त दो कोर्ट कमिश्नरों की रिपोर्ट के आधार पर उच्च न्यायालय ने बागेश्वर जिले में खड़िया खनन पर रोक लगाने का निर्णय लिया है.

कोर्ट कमिश्नरों की रिपोर्ट को पढ़ कर यह स्पष्ट होता है कि बागेश्वर जिले में सिर्फ खड़िया का ही खनन नहीं हो रहा है बल्कि नियम, कायदा, कानून को खदानों के मालिक खोद रहे हैं ! अफसर, कर्मचारी, सरकार या तो उनके मददगार हैं या फिर मूकदर्शक !

कोर्ट कमिश्नरों की जांच टीम ने पाया कि सभी खनन के क्षेत्रों में जमीन का धंसना एक गंभीर समस्या है. पहाड़ियों को नीचे से खोदा जा रहा है. उनमें किसी तरह की रिटेनिंग वाल आदि सुरक्षात्मक उपाय नहीं किए जा रहे हैं. अवैज्ञानिक तरीके से खनन का काम किया जा रहा है. खदानों की सीमाओं पर हरित पट्टी और रिटेनिंग वाल, खनन योजना में तो प्रस्तावित है पर धरातल पर गायब है. सुरक्षा प्रोटोकॉल जैसे बफर ज़ोन, ढलान पर्यवेक्षण और सुरक्षात्मक ढांचे भी कोर्ट कमिश्नरों के जांच दल ने नदारद पाये. जल निकास और जलप्रबंधन की भी कोई व्यवस्था खदानों में नहीं पायी गयी.

रिपोर्ट बताती है कि परंपरागत तरीके से मिट्टी,पत्थर,लकड़ी,पठाल के मकान हों या आधुनिक सीमेंट-कंक्रीट के बने मकान हों, दोनों में ही दरारें देखी गयी. प्राकृतिक संसाधनों जैसे जंगल, पानी आदि का अधिकार भी लोगों से छिन गया है.

रिपोर्ट कहती है कि जो ग्रामीण खनन कार्य में शामिल नहीं हैं, उनके लिए अपने खेतों, जंगल, चारागाहों तक पहुँचना मुश्किल हो गया है क्यूंकि रास्ते या तो नष्ट कर दिये गए हैं या बदल दिये गए हैं.

रिपोर्ट के अनुसार खदानों में श्रम क़ानूनों या मजदूरों के अधिकारों का जैसे कोई अस्तित्व ही नहीं है. मजदूरों को उनकी आधारभूत जरूरतें तक मुहैया नहीं की जाती. इसका अपवाद केवल एक खनन कंपनी है, जिसने अपने मजदूरों के लिए टिनशेड बनवाए हैं. न आग से लड़ने के उपकरणों का इंतजाम पाया गया, न ही प्राथमिक चिकित्सा का. मजदूरों को दिये गए सुरक्षा उपकरण जैसे हेलमेट, बूट, गॉगल आदि की उपलब्धता भी निरंतर नहीं है. उपकरणों का रखरखाव और टेस्टिंग तक नहीं की जाती. रिपोर्ट में लिखा गया है कि न्यूनतम मजदूरी तक नहीं दी जाती.

लेकिन इससे भी हैरत की बात, जिसका खुलासा यह रिपोर्ट करती है, वो बताती है कि खड़िया खदानों में बाल श्रम का होना. रिपोर्ट के अनुसार बच्चों को खड़िया निकालने के लिए संकरी दरारों के भीतर भेजा जाता है, जहां वयस्क लोग नहीं जा सकते हैं. इस तरह देखें तो उत्तर पूर्व की खदानों में जिन रैट होल माइनर्स पर उच्चतम न्यायालय सालों पहले प्रतिबंध लगा चुका है, वह काम बागेश्वर की खड़िया खदानों में बच्चों से धड़ल्ले से लिया जा रहा है !

रिपोर्ट कहती है कि बागेश्वर की खड़िया खदानों में धड़ल्ले से अवैध खनन हो रहा है, सारे पर्यावरणीय और वैधानिक नियम-कायदों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. जंगलों में पेड़ों का अवैध कटान हो रहा है. जल स्रोतों को नष्ट किया जा रहा है.

वे बताते हैं कि पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अक्सर बेहद सतही होते हैं, जो खनन के पर्यावरण और समुदाय पर दूरगामी प्रभाव को पकड़ने में नाकाम रहते हैं.

बागेश्वर में खड़िया खदानों की पर्यावरणीय स्वीकृति के मामले में भी भारी गड़बड़झाले की तरफ रिपोर्ट में इशारा किया गया है. रिपोर्ट कहती है कि परिवेश पोर्टल के अनुसार राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन एजेंसी (एसईआईएए) ने 373 पर्यावरणीय स्वीकृतियां प्रदान की हैं, लेकिन इनमें से केवल 68 फाइलों का डाटा अपलोड किया गया है. साथ ही कई लोगों ने गलत डाटा प्रस्तुत किया और उस गलत डाटा के आधार पर ही एसईआईएए ने पर्यावरणीय स्वीकृति दे दी. कोर्ट कमिश्नरों ने लिखा कि पर्यावरण की रक्षा के लिए जिम्मेदार एजेंसी अपने दायित्वों का निर्वहन करने में विफल रही है और वह सूचनाएं भी छुपा रही है.

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी असहाय अवस्था में है.
रिपोर्ट कहती है कि प्रावधान किया गया है कि अर्द्ध मशीनीकृत (semi mechanized) खनन होगा. लेकिन न तो केंद्र ने इसे परिभाषित किया और ना ही राज्य ने. इसलिए खनन करने वाले भारी मशीनों से खनन कर रहे हैं, जिससे ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण सहित कई नकारात्मक प्रभाव पड़ रहे हैं.

प्रशासन किस तरह खनन कारोबारियों के पक्ष में झुका हुआ है, इसकी बानगी भी रिपोर्ट में दिखती है. कोर्ट कमिश्नरों ने लिखा है कि एक गांव कांडे कन्याल में उपजिलाधिकारी (एसडीएम) हमसे पहले गए और ग्रामीणों ने बताया कि उनको धमकाया गया. कोर्ट कमिश्नरों ने लिखा है कि उनके सामने भी एसडीएम, ग्रामीणों की आवाज़ दबाने की कोशिश कर रहे थे. कोर्ट कमिश्नरों ने एसडीएम को वहाँ से जाने को कहा तो वे अड़ गए. जब कोर्ट कमिश्नरों ने एसडीएम से कहा कि अगर वे नहीं जाएंगे तो उच्च न्यायालय द्वारा निर्देशित कार्यवाही करना संभव नहीं हो पाएगा. एसडीएम के जाने के बाद लोग आंसुओं में थे. उन्होंने कोर्ट कमिश्नरों को बताया कि खदान मालिकों के बारे में उनकी शिकायतों पर प्रशासन कान ही नहीं देता है. एक पिता ने बताया कि रात भर मशीनें चलती रहती हैं और उसके बच्चे सो नहीं पाते, धमाकों से पूरा घर हिलता है.

कोर्ट कमिश्नरों ने लिखा है कि प्रशासन के साथ हम जिन भी खदानों में गए कोई भी नहीं चल रही थी. ग्रामीणों और मजदूरों ने बताया कि कोर्ट कमिश्नरों के दौरे के चलते प्रशासन ने खदानों में काम बंद रखने को कहा था और जब टीम वहाँ से चली गयी तो सूर्यास्त के बाद भी काम चल रहा था. रिपोर्ट में लिखा है कि राजस्व विभाग के कतिपय अफसर 10-15 वर्षों से बागेश्वर में ही जमे हैं. किसी का तबादला होता भी है तो वो कुछ ही दिन में बागेश्वर लौट आता है. राजस्व के ये अधिकारी-कर्मचारी, कोर्ट कमिश्नरों को सही नक्शे तक नहीं दिखा सके.
जिला खनन अधिकारी के बारे में रिपोर्ट में लिखा है कि वो किसी भी तरह की कार्यवाही करने की इच्छुक नजर नहीं आई.

रिपोर्ट कहती है कि जिला खनन न्यास के अध्यक्ष, जिलाधिकारी होते हैं और बागेश्वर के जिलाधिकारी ने खनन न्यास के धन का दुरुपयोग करते थे हुए, उससे अपने कार्यालय की रंग-रोगन, मरम्मत आदि करवा ली.
रिपोर्ट से पता चलता है कि पिछले आठ वर्षों से उत्तराखंड सरकार ने खड़िया की रॉयल्टी नहीं बढ़ाई है.
रिपोर्ट में कई खदानों और उनकी गड़बड़ियों का उल्लेख है, लेकिन उन पर कार्यवाही न होने का जिक्र भी रिपोर्ट में है. जैसे ठाकुर सिंह गड़िया की खदान, सुरेन्द्र सिंह भौंर्याल की खदान और नंदिता तिवारी की खदान आदि. इन पर अनुमति समाप्त होने के बाद अवैध रूप से खदान चलाने, जल स्रोतों में मलबा डालने, वन भूमि और राजस्व भूमि पर अतिक्रमण करने के मामले रिपोर्ट में इंगित किए गए हैं. लेकिन यह लिखा है कि इनकी विरुद्ध किसी तरह की कार्यवाही नहीं की जा रही है.

कोर्ट कमिश्नरों ने यह भी लिखा है कि उन्हें खदान मालिकों के पक्ष में रिपोर्ट देने के लिए फोन किए गए और आर्थिक लालच भी देने की कोशिश की गयी.

यह जांच रिपोर्ट बागेश्वर जनपद में खड़िया खनन के नाम पर चल रहे तमाम अवैध, पर्यावरण विरोधी और जनविरोधी कृत्यों को उजागर करती है. इससे साफ जाहिर है कि राज्य की भारतीय जनता पार्टी की सरकार कितने ही साफ-सुथरे शासन का दावा करे, लेकिन जरा सी भी सही जांच हो तो उसके दामन पर दाग ही दाग निकलेंगे !

देखना यह है कि सफ़ेद खड़िया के इस काले धंधे पर उच्च न्यायालय पूरी तरह लगाम कस देगा या अपने दौलत के दम पर खनन माफिया सारे मामले को कानूनी मकड़जाल में उलझा कर, पहाड़ का सीना चीरते रहेंगे !

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