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सीएम त्रिवेन्द्र का वो फैसला जिसने बदल दी 37 लाख महिलाओं का जीवन

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बात 2008 की है, इस वक्त उत्तराखण्ड में खण्डूड़ी सरकार सत्ता में थी। सरकार में तब त्रिवेन्द्र रावत बतौर कृषि मंत्री थे। उस दौरान एक सरकारी कार्यक्रम के सिलसिले में त्रिवेन्द्र रावत का चमोली जिले में जाना हुआ। वहां उनकी मुलाकात स्वयं सहायता समूह की महिलाओं से हुई। कृषि मंत्री त्रिवेन्द्र रावत महिलाओं से उनकी समस्याओं के सम्बन्ध में बातचीत कर रहे थे। इन्हीं समूह की महिलाओं के बीच विश्वेश्वरी देवी ने तत्कालीन कृषि मंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को अपनी पीड़ा बताई। समूह की महिला विश्वेश्वरी देवी ने बड़े तार्किक ढंग से बताया कि उन्हें स्वरोजगार के लिए बैंक ऋ़ण लेने में परेशानी पेश आती है। बैंक वाले कहते है कि उनके नाम कोई सम्पत्ति नहीं है। तो महिलाओं को कैसे ऋण दिया जा जाए।

विश्वेश्वरी देवी की बैंक लोन की समस्या मामूली सी नजर आती है। लेकिन त्रिवेन्द्र रावत जानते थे बैंक लोन और स्वरोजगार से जुड़ी ये समस्या सीधे महिलाओं की हकदारी और भूमिदारी से जुड़ा हुआ है। जमीन का स्वामित्व एक अति आवश्यक सामाजिक व आर्थिक पहलू है, जिस पर व्यक्ति की पहचान उसके अधिकार, निर्णय की क्षमता, आत्मनिर्भरता व आत्मविश्वास निर्भर करता है।
त्रिवेन्द्र जान गये थे कि महिलाओं के पास जमीन पर अधिकार न होने से उनके सर्वांगीण विकास और सशक्तिकरण पर पूर्ण विराम लग रहा है। महिलाएं कठिन समय में पैतृक भूमि का समुचित उपयोग करने में वे अक्षम हैं। समाज में पुरुष के मालिक होने के कारण व्यसन व अकारण जमीन बिक्री पर रोक नहीं है। जिससे पारिवारिक कृषि भूमि सुरक्षित नहीं रह पाती। पुश्तैनी जमीन में महिला की कोई निर्णायक स्थिति न होने के कारण उसके द्वारा किया गया विरोध अक्सर प्रभावहीन होता है।

उस वक्त कृषि मंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने ठान लिया था कि पुश्तैनी जोत जमीन में पत्नी का नाम भी पति के साथ सहखातेदार के रूप में दर्ज कराएंगे। ऐसा कानून बनाएंगे जिसमें महिलाएं अपने पति की पुश्तैनी जमीन में साझीदार हो और परिवार के फैसलों में उनकी राय भी अहमियत रखे।
सालों से त्रिवेन्द्र रावत के जहन में ये बात थी। समय बदला और त्रिवेन्द्र सिंह रावत उत्तराखण्ड के मुख्यमत्री बन गए।, वे जानते थे कि महिलाओं को हक दिलाने के लिए कानून में प्रावधान किया जाना आवश्यक है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की अध्यक्षता में हाल ही में हुई कैबिनेट की बैठक में महिलाओं को सह खातेदार बनाने का फैसला लिया।

भारत जैसे जटिल सामाजिक व्यवस्था में महिलाओं को सहखातेदार बनाना और कानूनी जामा पहना इतना आसान नहीं था। पितृसत्तामक समाज में में जहां बेटियों को को पराया धन माना जाता है। महिलाओं को भूमिधारी का दिलाने के लिए सामाजिक और कानूनी तमाम तरह की अड़चने थी। तमाम तरह के सवाल थे कि यह किस तरह से होगा? सहखातेदार महिलाओं को किस तरह बनाया जाएगा? इन सवालों के जवाब खोजने के लिए त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने मुख्य सचिव की अगुवाई में कमेटी का गठन किया।

पैतृक संपत्ति में सहखातेदार होंगी महिलाएं

प्रदेश में महिलाएं, पति की पैतृक संपत्ति में सहखातेदार होंगी। इसके साथ ही तलाकशुदा और संतानहीन बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में अधिकार दिया गया है। महिलाओं को न सिर्फ भूमि का मालिकाना हक दिया गया है बल्कि उन्हें भूमि पर लोन लेने के साथ ही उसे बेचने का अधिकार भी होगा। जरुरत पड़ने पर महिलाओं को आसानी से लोन भी मिल सकेगा। ये अधिकार पैतृक संपत्ति पर होगा।

बैंकों से मिल सकेगा लोन

इसके लिए उत्तराखंड (उत्तरप्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950)(संशोधन) विधेयक को मंजूरी दी गई है। इस फैसले से महिलाओं को अब स्वरोजगार और विभिन्न स्वावलंबन योजनाओं के लिए बैंकों से ऋण उपलब्ध हो सकेगा। महिलाओं को ये अधिकार देने के लिए संबंधित अधिनियम की धारा-130, धारा-तीन की उपधारा-30 और धारा-171 में संशोधन किए गए हैं।

पहले सिर्फ पति द्वारा खरीदी प्रॉप्रटी पर होता था हक

अब पैतृक संपत्ति पर पत्नी को संक्रमणीय अधिकार हो जाएगा। इससे पहले पति के द्वारा खरीदी गई प्रॉपर्टी पर ही पत्नी का हक होता था। जबकि पैतृक संपत्ति पर पति का ही अधिकार होता था। पति की मौत के बाद ही पत्नी का अधिकार पति के द्वारा अर्जित की हुई संपत्ति पर होता है। जब स्त्री पति से तलाक ले लेती है तो ये अधिकार भी खत्म हो जाता है। अगर पत्नी की मृत्यु हो जाती है तो ऐसी स्थिति में पत्नी को मिला अधिकार जीवित पति को होता है।

विश्वेश्वरी देवी को भी यकीन नहीं था कि कभी उन्हें और उन जैसी महिलाओं को भूमिधरी का हक मिलेगा। जब उन्होंने सुना कि त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने महिलाओं को भूमिधरी का हक दिलाने के लिए कानून बनाया है तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने त्रिवेन्द्र सिंह रावत का आभार व्यक्त किया। त्रिवेन्द्र सरकार के इस फैसले से प्रदेश की लगभग 37 लाख महिलाओं का जीवन बदल दिया है। अब ये आधी आबादी भी पैतृक सम्मति की मालिक और पार्टनर बन गई है। परिवार के अहम फैसलों में अब उनकी राय मशविरा की अहमियत बढ़ गई है। उनको भी अब सहखातेदार के तौर पर नहीं पहचान मिल गई है। त्रिवेन्द्र सिंह रावत का सहखातेदार का ये फैसला देशभर में नजीर बन गया है। अब देश की दूसरे राज्य की महिलाओं का अपने पति के पैतृक सम्मत्ति में साझेदार बनने के रास्ते साफ हो गये हैं।

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