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फीस को लेकर शिक्षा विभाग की बंदर कूद, स्कूलों के भरोसे छोड़ा फीस का मसला

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देहरादून। निजी स्कूलों की मनमानी और फीस को लेकर शिक्षा विभाग की बंदर कूद लगातार जारी है। कभी सूबे के शिक्षा मंत्री फीस एक्ट लाए जाने का बयान देते हैं, तो कभी शिक्षा सचिव फीस का मामला स्कूल प्रबंधन के विवेक पर छोड़ने का निर्देश जारी करते हैं। फिलहाल तो ऐसा मालूम होता है कि निजी स्कूलों की मनमानी से आजिज अभिभावकों को मौजूदा सत्र में तो किसी तरह की राहत नहीं मिलने वाली है।

हाल ही में शिक्षा मंत्री का मौजूदा सत्र में निजी स्कूलों की मनमानी को रोकने के लिए फीस एक्ट लाने का बयान मीडिया में आया। हालांकि फीस एक्ट को लेकर शिक्षा मंत्री पहले भी कई बार इस तरह के बयान दे चुके हैं। और फीस एक्ट में देरी की वजह विभाग में मौजूद नाफरमान नौकरशाही को बता चुके हैं।

वहीं प्रदेश के शिक्षा सचिव ओर से 22 अप्रैल को फीस को लेकर आदेश जारी हुआ है। जिस आदेश का सीधा और सपाट सार यह है कि फीस तो निजी स्कूल ही तय करेंगे। इससे आदेश में छिपा संदेश है कि अभिभावकों तुम शिकायत करो या कोर्ट जाओ लेकिन प्रदेश का शिक्षा विभाग तुम्हे इन स्कूलों की मनमानी से कोई राहत दिलाने वाला नहीं है। शिक्षा सचिव की ओर से ये फीस को लेकर पहला आदेश जारी नहीं हुआ बल्कि शिक्षा सचिव इससे पहले भी इसी तरह के आदेश के लिए कई बार कागज काले कर चुके हैं।

ऐसा नहीं है कि केवल उत्तराखण्ड ही एकमात्र राज्य हो जहां निजी स्कूलों की मनमानी के मामले आते हो। देशभर के राज्यों में स्कूलों के मनमानी के खबरें जब-तब मीडिया के जरिये आती रहती हैं। उत्तराखण्ड के अलावा तमाम राज्यों में अभिभावक संघ फीस को लेकर कोर्ट में भी गये। कई राज्यों में निजी स्कूलों की मनमानी को लेकर कोर्ट में मामले विचाराधीन है। लेकिन वहां की सरकारों ने फीस और दूसरे तरह की मनमानी को लेकर गाइडलाइन जारी कर अभिभावकों को फौरी राहत पहुंचाने की कोशिश की है। लेकिन उत्तराखण्ड में सरकार और शिक्षा विभाग स्कूलों की मनमानी को लेकर किसी भी तरह गंभीर नजर नहीं आता है।

यदि भाजपा शासित राज्यों की बात करें तो मध्य प्रदेश में राज्य सरकार ने फीस को लेकर गाइडलाइन जारी की है। वहां पर फीस बढ़ोतरी के लिए स्कूलों को जिला समिति से मंजूरी लेनी अनिवार्य है और समिति को फीस बढ़ाने का कारण बताना होता है।

भाजपा शासित पड़ोसी राज्य हरियाणा की बात करें तो वहां की सरकार ने भी फीस को लेकर गाइडलाइन जारी की है। हरियाणा में गाइडलाइन के मुताबिक निजी स्कूलों में फीस की जानकारी आनलाइन शिक्षा निदेशालय को देनी होगी। फीस को लेकर तमाम ब्यौरा भी शिक्षा विभाग को देना होगा।

लेकिन उत्तराखण्ड ही ऐसा राज्य है जहां शिक्षा विभाग के अधिकारी फीस को लेकर निजी स्कूलों पर ही बार-बार भरोसा जताता है। और फीस के सारे मामले निजी स्कूल प्रबंधन पर छोड़ देता है।
निजी स्कूल ना सिर्फ फीस में मनमानी करते है बल्कि यूनीफार्म, किताबे, स्कूल बस और दूसरे तमाम तरीकों से अभिभावकों से वसूली करते हैं। इन स्कूलों की शहर में अधिकृत दुकानें है जहां से वे अभिभावकों को यूनीफार्म, किताबें आदि खरीदने के लिए भी मजबूर करते हैं।

अपने बच्चों के भविष्य को देखते हुए अभिभावक भी चुपचाप शोषण सहते रहते हैं। लेकिन विभागीय अफसर कागजबाजी और मंत्री बयानबाजी तक ही सीमित हैं। निराश और हताश अभिभावक स्कूलों के जोर-जुलम के आगे झुकने को मजबूर है।

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