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विश्व पर्यावरण दिवसः पुरानी परम्पराओं को अपना कर ही हो सकता है जल संरक्षण

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देहरादून। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर उत्तराखण्ड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केन्द्र (यूसर्क), देहरादून ने आनलाइन माध्यम से ’उत्तराखंड में जल सुरक्षा एवं जलसंरक्षण पर केंद्रित पर्यावरणीय समाधान’ विषय पर कार्यक्रम का आयोजन किया। जिसमें विषय विशेषज्ञों ने उत्तराखण्ड में जल संरक्षण को लेकर अपने विचार व्यक्त किए।

यूसर्क की निदेशक प्रो० अनीता रावत ने अपने विचार रखते हुए कहा कि प्रकृति और संस्कृति के समन्वय के संस्कारों को जीवन में समावेशित करने के लिए प्रारम्भ से ही प्रयत्न करना होगा। पर्यावरणीय आचार-विचार एवं परंपरागत समाज के मूल्यों को पुनर्स्थापित करना होगा।

उन्होंने कहा कि ऐसी शिक्षा को बढ़ावा देना होगा जो प्रकृति की अखंडता व प्रकृति का सम्मान करे व इकोसिस्टम के संरक्षण व संवर्धन की आवश्कता को आत्मसात करे। उन्होंने कहा कि ग्रास रुट लेवल पर, ग्रामीण स्तर पर, न्याय पंचायत स्तर पर कार्य करना होगा। परंपरागत संस्कृति और प्रैक्टिसेज के माध्यम से समाज के परंपरागत ज्ञान का समावेश करना होगा।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पाणी राखो आंदोलन के प्रणेता सचिदानंद भारती ने मुख्य व्याख्यान दिया। उन्होंने अपने व्याख्यान में उत्तराखण्ड की जल समस्याओं के समाधान हेतु पाणी राखो आन्दोलन पर विस्तार से बताते हुये तथा पहाड़ी चाल, खाल के महत्व एवं उनकी आवश्यकता पर बताया।

सचिदानंद भारती जी ने पूरे देश में जल तलैया बनाने, पुराने जल स्रोतों के संवर्धन पर किये गये कार्य, वर्षा जल संरक्षण कार्य, जंगलों के विकास पर विस्तार से बताया तथा सभी से इससे जुड़ने को कहा। उन्होंने जल संरक्षण की पुरानी परम्पराओं को अपनाने को कहा।

कार्यक्रम में ‘‘क्लीनिंग आफ रिवर्स एण्ड रिजुविनेशन आफ स्माल ट्रिब्यूटरीज इन उत्तराखण्ड’’ विषय पर पैनल डिस्कसन भी किया गया। जिसमें बोलते हुये एचएनबी गढ़वाल विवि बादशाही थाल परिसर के जल विशेषज्ञ प्रो० एन0 के0 अग्रवाल ने कहा कि पहाड़ के छोटे-छोटे जल स्रोतों को पुनर्जीवित करके नदियों को पुनर्जीवित किया जा सकता है। इस दिशा में सामूहिक जन सहभागिता आवश्यक है। पहाड़ के चाल-खाल को पुर्जीवित करके, सघन वृक्षारोपण करके, जलस्रोतों को सवंर्धित किया जा सकता है।

पैनल डिस्कसन में कोसी नदी पुनर्जीवन के प्रोजेक्ट कोर्डिनेटर शिवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि जलागम प्रबन्धन करके, सघन पौधारोपण एवं जन सहभागिता से कोसी, कुंजगढ़, सरोटागाड़, गगास, रामगंगा नदियों जल स्रोतों का पुनर्जीवित किया जा रहा है।

हैस्को के भूवैज्ञानिक विनोद खाती ने चाल, खाल, नौले धारे के पुनर्जीवन हेतु जनसहभागिता के साथ भू-वैज्ञानिक दृष्टि से उपयोगी स्थान पर वर्षाजल संचयन विधियां अपनाने को कहा। उन्होंने पहाड़ में पुनर्जीवित किये गये जलस्रोतों के अपने अनुभव साझा किये। श्री विनोद खाती ने उत्तराखंड एवं हिमाचल प्रदेश में पुर्नर्जीवित किये गए जलस्रोतों पर विस्तार से बताया।

यूसर्क द्वारा आयोजित की गयी जल केंद्रित पर्यावरणीय समाधान विषय पर माडल निर्माण प्रतियोगिता एवं जल केंद्रित पर्यावरणीय समाधान हेतु नवाचार समाधान विषयक लेखन प्रतियोगिता के जूनियर एवं सीनियर वर्ग के प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त प्रतिभागियों का परिणाम यूसर्क की वैज्ञानिक डा0 मन्जू सुन्दरियाल एवं डा० राजेन्द्र सिंह राणा द्वारा घोषित किया गया।

यूसर्क के वैज्ञानिक डा0 भवतोष शर्मा ने यूसर्क द्वारा स्थापित किये गये नदी पुनर्जीवन केन्द्र (जलशाला) के माध्यम से किये जा रहे वैज्ञानिक अध्ययन कार्यों पर बताते हुये कहा कि यूसर्क द्वारा राज्य के विभिन्न जलस्रोतों की जलगुणवत्ता आदि का कार्य यूसर्क की जल गुणवत्ता प्रयोगशाला में किया जा रहा है। आम जनमानस को विभिन्न तकनीकी माध्यमों तथा कार्यक्रमों के द्वारा जल संरक्षण हेतु जागरूक किया जा रहा है।

कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन यूसर्क के वैज्ञानिक डा० भवतोष शर्मा द्वारा किया गया। कार्यक्रम में उत्तराखण्ड के विभिन्न शिक्षण संस्थानों के विद्यार्थियों, शिक्षकों सहित कुल 90 लोगों द्वारा प्रतिभाग किया गया। कार्यक्रम के आयोजन में यूसर्क की आई०सी०टी० टीम के ओम जोशी, उमेश जोशी, राजदीप जंग, शिवानी पोखरियाल द्वारा सक्रिय प्रतिभाग किया गया।

माटी संस्था, हिमालयन ग्राम विकास समिति गंगोलीहाट, डी०एन०ए० लैब, किशन असवाल, पवन शर्मा, डा0 शम्भू प्रसाद नौटियाल, विनीत, एल०डी० भट्ट, प्रो० के० डी० पुरोहित, पर्यावरणविद प्रताप पोखरियाल उत्तरकाशी, दीप जोशी बागेश्वर, सुनील नाथन बिष्ट चमोली द्वारा चर्चा में प्रतिभाग कर अनुभव बताये गये।

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