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सुलगते सवालः सुरसा राक्षसी, कार्मिक विभाग का एक आदेश और हनुमान की तलाश

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देहरादून। रामायण में एक राक्षसी थी उसका नाम सुरसा था। कहा जाता है कि सुरसा बड़ी विशालकाय राक्षसी थी जो भी उसके सामने से गुजरता था वह उसे अपना भोजन बना लेती थी। सुरसा राक्षसी पर केवल हनुमान जी ही विजय पा सके। अब बात यहां उत्तराखण्ड प्रदेश की कर लेते हैं। ऐसा मालूम होता है कि उत्तराखण्ड की बेलगाम नौकरशाही सुरसा राक्षसी सरीखी हो चली है। कांग्रेस और बीजेपी की सरकार ने हनुमान होने का दावा तो किया लेकिन वे भी इस पर विजय प्राप्त नहीं कर पाये हैं। इस बात की तस्दीक उत्तराखण्ड शासन की तरफ से हाल ही में जारी आदेश करता है।

कार्मिक और गोपनीय विभाग की ओर से जारी इस आदेश में लोक सेवकों को कहा गया है कि किसी भी स्थानान्तरण के लिए राजनैतिक दबाव ना बनाया जाए। शासन के तरफ से जारी इस आदेश ने एक बार फिर सरकारी विभागों में होने वाले स्थानान्तरण पर कई सारे सवालों को जन्म दे दिया है। अभी हाल में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सत्ता की कमान संभालने के बाद कई बड़े अफसरों के ट्रांसफर किए। नये मुख्यमंत्री का अफसरों के विभागों और जिम्मेदारी में फेरबदल एक सामान्य प्रक्रिया होती है। अक्सर देखा जाता है जब भी कोई मुख्यमंत्री सत्ता संभालता है तो वह अपने भरोसे के अधिकारियों को जिम्मेदार और जनता से सीधे जु़ड़े विभागों में तैनात करता ताकि जनहित की समस्याओं का त्वरित गति से निस्तारण हो।

मुख्यमंत्री धामी ने सत्ता संभालने के बाद सबसे पहले बड़ा फैसला लेते हुए तत्कालीन मुख्य सचिव ओम प्रकाश को हटाकर भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण में तैनात आईएएस अफसर डा० एस०एस० संधू को मुख्य सचिव के पद पर तैनाती दी। इस फेरबदल से जनता की बीच बड़ा संदेश गया कि प्रदेश की बेलगाम अफसरशाही को नये और युवा मुख्यमंत्री कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे। इसके बाद शासन, विभागों और जिले में भी अफसरों में की जिम्मेदारियों में फेरबदल किया गया। मीडिया के जरिये जनता में यही संदेश गया कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बेलगाम नौकरशाही पर पूरी नकेल कस दी है।

लेकिन कार्मिक विभाग के इस आदेश ने कई सवालों को जन्म दे दिया है। इस आदेश ने हाल ही में शासन में हुए बड़े फेरबदल पर कई सवालिया निशान खड़े कर दिये हैं। क्या हाल ही शासन में जो फेरबदल हुआ है वे इन अफसरों के राजनीतिक आकाओं के दबाव में किया गया? जिन अफसरों को नए विभागों में तैनाती मिली है क्या इन अफसरों ने मनचाहा विभाग हासिल करने के लिए अपने राजनैतिक रसूख का इस्तेमाल किया? क्या उत्तराखण्ड में नौकरशाही सुरसा राक्षसी की तरह बलवान हो चली है जिस पर विजय पाना सरकारों की बूते के बात नहीं रह गई है?

कार्मिक और गोपनीय विभाग की ओर से जारी आदेश को सामान्य घटना नहीं है। और सामान्य मानने की भूल भी नहीं की जानी चाहिए। शासन के साथ-साथ अभी हाल में जिले और सरकारी विभागों में तबादले हुए हैं। तो क्या ये माना जाए कि इन विभागों में अफसरों को जो तैनाती मिली है वे उनके राजनैतिक आकाओं के दबाव में किया गया?

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