देहरादून। एक सप्ताह गुजर जाने के बाद भी बेरोजगार फार्मासिस्टों को सरकार की तरफ से अभी तक कोई ठोस आश्वासन नहीं मिल पाया है। गुरूवार से अपनी जायज मांगों को लेकर आम जनसमर्थन जुटाने की मुहिम शुरू कर दी है। इस सिलसिले में बेरोजगार फार्मासिस्ट गुरूवार को देहरादून स्थित विधायक हास्टल पहुंचे और विधायकों से मिलकर अपनी जायज मांगों को उनके सामने रखा और ज्ञापन सौंपा।
इस दौरान विधायकों ने बेरोजगार फार्मासिस्टों की मांगों को लेकर सकारात्मक रुख दिखाया है। गौरतलब है कि प्रशिक्षित बेरोजगार डिप्लोमा फार्मासिस्ट (एलो.) महासंघ 19 अगस्त से फार्मासिस्टों की भर्ती की मांग को लेकर लगातार धरने पर है।
इस दौरान बेरोजगार फार्मास्टिों ने महानिदेशालय, से लेकर सीएम आवास तक प्रदर्शन किया लेकिन एक सप्ताह गुजर जाने के बाद भी बेरोजगार फार्मास्टिों को सरकार की तरफ से को अभी तलक कोई ठोस आश्वासन नहीं मिल पाया है। धरने पर बैठे बेरोजगार फार्मासिस्टों का कहना है कि सरकार ने पिछले 17 साल से फार्मासिस्टों की कोई भर्ती नहीं की है। जिसके चलते फार्मासिस्ट सालों से बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं।
विधायकों को ज्ञापन सौंपने वालों में महासंघ अध्यक्ष महादेव गौड़, मीडिया प्रभारी हरि प्रकाश सेनवाल, धनपाल सिंह रावत संजीव बलूनी, लव बीर सिंह चौहान, सलेंदर नौटियाल, प्रकाश आर्य, नरेश चंद्र पुरी, मनोहर सिंह बोरा जय प्रकाश जोशी, इंदु डंगवाल आदि शामिल रहे।
इस महासंघ के अध्यक्ष महादेव गौड़ कहते हैं कि साल 2005-06 में आखिरी बार डिप्लोमा फार्मासिस्ट की भर्ती हुई थी। तब से 17 साल का अरसा गुजर चुका है लेकिन अब सरकार नई भर्ती निकालने के बजाय फार्मासिस्टों के पदों को ही समाप्त करने पर तुली हुई।
महादेव गौड़ बताते हैं कि पूर्व की कांग्रेस सरकार ने उत्तराखण्ड के ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूती देने के लिए स्वास्थ्य उपकेन्द्र स्तर पर फार्मासिस्ट के पद सृजित किये थे। बाकायदा उस समय स्वास्थ्य उपकेन्द्रों में फार्मासिस्टों की तैनाती भी की गई थी। लेकिन सरकार बदलने के बाद इस व्यवस्था को आगे की सरकारों ने ठंडे बस्ते में डाल दिया। अब मौजूदा भाजपा सरकार आईपीएचसी के मानकों को हवाला देकर फार्मासिस्ट के पदों को ही समाप्त करना चाहती है। वे बताते हैं कि हमारी लड़ाई सिर्फ फार्मासिस्ट की भर्ती तक ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं की अहम रीढ़ फार्मासिस्ट के अस्तित्व की लड़ाई है।
फार्मासिस्ट संघ के जिला टिहरी ईकाई के मीडिया प्रभारी हरि प्रकाश सेनवाल कहते हैं कि दवाई और फार्मासिस्ट का अहम नाता है। फार्मासिस्ट स्वास्थ्य सेवाओं की कड़ी में अहम रीढ़ है। बिना फार्मासिस्ट के अस्पताल में बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की कल्पना भी नहीं की जा सकती। वे प्रदेश सरकार के बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के दावों पर सवाल दागते हैं बिना फार्मासिस्टों के कैसे प्रदेश सरकार जनता को बेहतर स्वास्थ्य सुविधायें उपलब्ध करा पा रही है?
बेरोजगार फार्मासिस्ट संघ टिहरी ईकाई के अध्यक्ष लववीर सिंह चौहान कहते हैं कि सरकार ने हमेशा से ही फार्मासिस्टों के प्रति उपेक्षा और उदासीनता दिखाई है। जिसके चलते प्रशिक्षित फार्मासिस्टों का प्रदेश में शोषण हो रहा है। डिप्लोमा फार्मासिस्ट निजी अस्पतालों में अल्पवेतन में काम करने को मजबूर हैं। मेडिकल स्टोर के मालिकान भी डिप्लोमा फार्मासिस्ट की बदौलत कमाई कर रहे हैं लेकिन बेरोजगार फार्मासिस्टों को उनकी योग्यता के अनुसार वेतन तक नहीं मिलता।
दरअसल प्रशिक्षित बेरोजगार डिप्लोमा फार्मासिस्ट (एलो.) महासंघ फार्मासिस्ट की भर्ती समेत 14 सूत्रीय मांगों को लेकर धरने पर है। डिप्लोमा महासंघ को आईपीएचसी के मानकों को लेकर भी एतराज है। महासंघ के अध्यक्ष महादेव गौड़ कहते हैं कि सरकार आईपीएचसी मानकों को हवाला देकर फार्मासिस्ट के पदों को खत्म कर रहे है।
वे कहते है आईपीएचसी मानकों के तहत स्वास्थ्य उप केंद्रों पर फार्मासिस्ट का पद नहीं होता है, स्वास्थ्य राज्य सूची का विषय होने के कारण सरकारें आवश्यकतानुसार भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए उसमें परिवर्तन कर सकती है। इसी तर्ज पर 536 केंद्रों पर फार्मासिस्ट की नियुक्ति की गई थी।
प्रदेश में कुल 1904 स्वास्थ्य उपकेंद्र है। पूर्व की कांग्रेस सरकार ने विषम भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए ग्रामीणों क्षेत्रो में स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने के लिए स्वास्थ्य उपकेन्द्र में फार्मासिस्ट की तैनाती का फैसला लिया था।
आईपीएचसी मानक लागू होने की स्थिति में फार्मासिस्ट संवर्ग को सबसे अधिक नुकसान हो रहा है। एक तो 536 पद वहां से खत्म होंगे। दूसरा 536 जो फार्मासिस्ट वहां पर नियुक्त है,वह चिकित्सालय में रिक्त पदों के सापेक्ष समायोजित होंगे। सीधे-सीधे 1072 पद जिन का नुकसान फार्मेसिस्ट को होना तय है। आईपीएचसी के आधार पर फार्मेसी संवर्ग का जो ढांचा पुनर्गठित हो रहा है उसमें पहले से गठित 1026 पदों में भी कटौती करके 963 किया जा रहा है और 63 अधिक संख्या वाले पदों को भी रिक्त पदों के सापेक्ष समायोजित किया जा रहा है, जिससे 126 पदों का भी यहां नुकसान हो रहा है।
कुल मिलाकर आईपीएचसी के मानको से फार्मेसी संवर्ग में 1198 फार्मासिस्ट के पदों पर नुकसान हो रहा है अर्थात हम यह कह सकते हैं कि 1198 बेरोजगार फार्मासिस्टो के भविष्य के साथ अन्याय होना निश्चित है।