रिपब्लिक डेस्क। उत्तराखण्ड में इन दिनों घास पर चर्चा एक प्रासंगिक विषय हो चला है। कभी तुच्छ समझी जाने वाली घास ने यहां राजनीतिक अवतार ले लिया है। फेसबुक से लेकर राजनीतिक गलियारों में घास की चर्चा आम हो गई है।
वैसे तो घास एक एकबीजपत्री हरा पौधा होता है। इसके प्रत्येक गांठ से रेखीय पत्तियां निकलती हुई दिखाई देती हैं। आमतौर पर यह कमजोर, शाखायुक्त, रेंगनेवाला पौधा है। बांस, मक्का तथा धान के पौधे भी घास ही हैं।
घास का परिचय
घास शब्द का अर्थ बहुत व्यापक है। आमतौर पर कोई किसी को यूंही ही घास नहीं डालता है। अच्छे-अच्छे लोग भी यहां घास छीलते नजर आ सकते है। साधारणतया घासों में वे सब वनस्पतियां शामिल की जाती है जो गाय, भैंस, भेड़, बकरी आदि पालतू पशुओं के चारे के रूप में काम आती हैं। उत्तराखण्ड में तो चोरी से घास चरने वाले बैलों को उज्याडृ बल्द की संज्ञा दी जाती है।
भारतीय समाज में घास को लेकर कई मुहावरे भी गढ़े गये हैं जैसे अक्ल घास चरने जाना, घास खोदना, घास काटना, घास छीलना, घास ना डालना आदि। इन मुहावरों का समय काल परिस्थिति के अनुसार इस्तेमाल भी किया जा सकता है। मसलन उत्तराखण्ड के नौजवान रोजगार के अभाव में घास छील रहे हैं। कोई भी नेता एक दल से दूसरे दल में घास खोदने के लिए तो नहीं जाता!
घास शेर की वीरता का भी प्रतीक है। जैसे की कहा जाता है कि शेर भूखा मर जाता है लेकिन घास नहीं खाता है। निष्कर्ष यह निकलता है कि जंगल में घास इसलिए अधिक मात्रा में होती है, क्योंकि शेर स्वयं घास नहीं खाता और घास खाने वाले जानवरों को खा जाता है। तो जंगल की घास शेर की वीरता का प्रमाण है।
लेकिन घोड़ा घास खाता है और वह शेर की तरह बहादुर नहीं होता है। घास खाना घोड़े का जन्मसिद्ध हक है। घोड़ा शेर की तरह कभी भी बहादुर नहीं बन सकता है। कहा भी गया है कि घोड़ा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या? इस प्रकार घास खाना घोड़े की मजबूरी तो है लेकिन ये अधिकार और हक का भी भी प्रतीक है।
घास का चरित्र विद्रोही भी है। इसका उपयोग क्रांति के प्रतीक के तौर पर भी किया जाता है। अवतार सिंह संधू ‘पाश’ की कविता में घास का चरित्र विद्रोहात्मक हो उठा है-
मैं घास हूं
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊँगा।
इसी प्रकार नरेश सक्सेना लिखते हैं-
सारी दुनिया को था जिनके कब्ज़े का अहसास
उनके पते ठिकानों तक पर फैल चुकी है घास
धरती भर भूगोल घास का तिनके भर इतिहास
घास से पहले, घास यहाँ थी, बाद में होगी घास।
वानस्पतिक वर्गीकरण के अनुसार केवल ग्रेमिनी कुल के पौधे ही घास के तहत माने जाते हैं। लगभग दो लाख फूलने और फलने वाले पौधों में से पांच हजार इस कुल के अंतर्गत आते हैं। चारागाह एवं खेल के मैदान ऐसे स्थानों में होने वाले पौधे, जैसे हाथी घास (नेपियर ग्रास), सूडान घास) दूब आदि को तो घास कहते ही हैं हमारे भोजन के अधिकांश अनाज, जैसे गेहूं, धान, मक्का, ज्वार, बाजरा आदि भी घास कुल में ही गिने जाते हैं। इनके अलावा ईख, बांस आदि भी इसी कुल में सम्मिलित हैं।
घास डालना नहीं है आसान
घास की बड़ी महत्ता है। इसीलिए इसे किसी को “डालने” के लिए बहुत बुद्धि की आवश्यकता पड़ती है। ऐसा नहीं है किसी को भी घास डाल दिया जाय। इसके लिए बहुत सोचना विचारना पड़ता है। इसमें बहुत विलक्षण बुद्धि का प्रयोग करना पड़ता है। घास डालने के पहले आगे पीछे देखना पड़ता है। कही ऐसा न हो क़ि घास भी खा ली जाय और उसका ऱस न मिल सके।
आखिर घास यदि सूख जाय तो फिर किस काम की? इसके लिए यह भी सोचना पड़ता है क़ि जल्दी से जल्दी किसी को घास डाल दिया जाय या जल्दी से जल्दी घास खा लिया जाय। नहीे तो घास का सब ऱस सूख जाएगा या फिर देखते ही देखते कोई दूसरा ही घास का ऱस न ले ले। इतना समय इस घास को पानी देने में बीत गया। इसे हरा भरा रखने के लिए कितनी निराई गुड़ाई करनी पडी। क्या क्या उर्वरक इस्तेमाल करने पड़े। कितने कीट नाशक छिड़कने पडे ताकि सदा बहार हरियाली बनी रहे और फिर यदि घास सूख ही जाय तो क्या लाभ?
अब वो समय नहीं रह गया है क़ि घास भी आसानी से मिल जाय। घास की हरियाली सदाबहार बनी रहे. इसके लिए अनेक “टैक्टिस” का भी सहारा लेना पड़ता है। अनेक रूप, आकार, प्रकार एवं स्वांग का आश्रय लेना पड़ता है।