नैनीताल। उत्तराखंड हाई कोर्ट ने सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के नवनियुक्त वाइस चांसलर एनएस भंडारी की नियुक्ति के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। मामले को सुनने के बाद कोर्ट ने उनकी नियुक्ति को यूजीसी की नियमावली के विरुद्ध पाते हुए उसे निरस्त कर दिया। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि उन्होंने यूजीसी की नियमावली के अनुसार 10 साल को प्रोफेसरशिप नहीं की है।
हाई कोर्ट के ताजे फैसले ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि प्रदेश में उच्च शिक्षण संस्थानों और विवि के अंदर सब ठीक नहीं चल रहा है। इससे पहले उत्तराखण्ड विवि के अंदर प्राध्यापकों की अवैध तौर पर नियुक्ति का मामला मीडिया में सुर्खियों बटोर चुका है।
उधर उत्तराखंड में एक और कुलपति की नियुक्ति अवैध होने के बाद मामले ने राजनीतिक तूल पकड़ लिया है। कांग्रेस फिर उच्च शिक्षा मंत्री डॉ धन सिंह रावत और बीजेपी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल सकती है। 2017 के बाद बीजेपी के सत्ता में आने से अब तक तीन कुलपतियों की नियुक्ति अवैध हो गई है और दो कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर शासन स्तर व न्यायालय में मामला लंबित है। जिससे साफ है कि इन दो कुलपतियों की छुट्टी भी आने वाले कुछ दिनों में हो सकती है। उधर बिना योग्यता के आरएसएस पृष्ठभूमि के कुलपति के पद पर चयन को लेकर बीजेपी सवालों के घेरे में है। जिससे साफ है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस से शिक्षा के साथ खिलवाड़ का मुद्दा बना सकती है।
इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान व न्यायमूर्ति एनएस धनिक की खंडपीठ में हुई। बता दें कि देहरादून निवासी रविंद्र जुगरान ने याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने कहा राज्य सरकार ने सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के नवनियुक्त वाइस चांसलर एनएस भंडारी की नियुक्ति यूजीसी के नियमावली को दरकिनार करके की है।
याचिकाकर्ता का कहना है कि यूजीसी की नियमावली के अनुसार वाइस चांसलर नियुक्त होने के लिए दस साल की प्रोफेसरशिप होनी आवश्यक है जबकि, एनएस भंडारी ने करीब आठ साल की प्रोफेसरशिप की है। बाद में प्रोफेसर भंडारी उत्तराखंड पब्लिक सर्विस कमीशन के मेंबर नियुक्त हो गए थे। इस दौरान की सेवा उनकी प्रोफेसरशिप में नहीं जोड़ी जा सकती है। इसलिए उनकी विश्वविद्यालय में नियुक्ति अवैध है और उनको पद से हटाया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता ने याचिका में राज्य सरकार, लोक सेवा आयोग, कुमाऊं विश्वविद्यालय, सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा व वाइस चांसलर एनएस भंडारी को पक्षकार बनाया था।