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उत्तराखण्ड मुक्त विवि के शिक्षक-कर्मचारी प्रदर्शन को हुए मजबूर, कहा उत्पीड़न नहीं करेंगे बर्दाश्त

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देहरादून। उत्तराखण्ड मुक्त विवि के कुलपति पर सत्ता के मद में इस कदर चूर हो गये है कि अब नियम-कायदे उनके सामने बौने साबित हो रहे हैं। जब सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का। ये कहावत इन दिनों उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति पर सटीेक बैठती है। कुलपति महोदय का रुआब और कद इतना बड़ा हो चला है कि अब उनके सामने कुलाधिपति के आदेश भी कोई मायने नहीं रखते हैं। इतना ही नहीं उन्होंने अब विश्वविद्यालय को अपनी निजी जागीर समझ लिया है और यहां काम करने वाले शिक्षकों को अपना गुलाम।

कुलपति की तानाशाही और मनमानी से अब हालात यहां तक पहुंच चुके हैं विवि कर्मचारी और शिक्षक प्रदर्शन करने को मजबूर हो गये हैं। बुधवार को विवि के कर्मचारियों और शिक्षकों ने विवि प्रशासन के खिलाफ विश्वविद्यालय गेट को जाम कर दिया है। शिक्षकों का आरोप है कि विवि प्रशासन कर्मचारियों और शिक्षकों के उत्पीड़न पर उतर आया है। जबकि विवि में विवि प्रशासन के चहेतों की मौज बनी हुई है। शिक्षकों का आरोप है कि उन्हें जरूरी काम होने और स्वास्थ्य खराब होने के बाद भी गेट के बाहर जाने नहीं दिया जाता है।

जब शाम को पांच बजे के बाद भी विवि को गेट शिक्षकों और कर्मचारियों को बंद मिला तो ये देखकर शिक्षक उग्र हो गये और उन्होंने कुलपति और कुलसचिव समेत सभी अधिकारियों के वाहन जाने के रास्ते का जाम कर दिया।

प्रदर्शनकारियों की अगुवाई कर रहे शिक्षक नेता डा० भूपेन सिंह कुलपति पर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने विवि को कैदखाना बना दिया है। जबकि उनके चहेते उपस्थिति रजिस्टर में दस्तखत बिना तनख्वाह ले रहे हैं। डा० भूपेन ने कहा कि शिक्षक-कर्मचारियों का उत्पीड़न किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

आक्रोशित शिक्षकों और कर्मचारियों ने विवि गेट में एक सभा भी की जिसमें उन्होंने विश्वविद्यालय में हो रहे भ्रष्टाचार का मामला भी उठाया।

दरअसल उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति ओपी नेगी कार्यकाल फरवरी में खत्म होने वाला है। लेकिन वे अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में भी विवादास्पद भर्तियां करने से बाज नहीं आ रहे हैं। कुलपति के कार्यकाल के अंतिम तीन महीनों में कार्य परिषद की बैठक ना बुलाने और भर्तियां ना करने के प्रावधान और परंपरा के बावजूद धड़ल्ले से मनमानी जारी है।

अब 2 दिसंबर को कार्य परिषद की बैठक बुलाने की जोड़-तोड़ कर आठ नए पदों पर भर्ती का रास्ता साफ़ कर लिया गया है। कुलाधिपति और राज्यपाल की तरफ़ से पहले कार्य परिषद की बैठक ना बुलाने के निर्देश होने के बावजूद बाद में कुलपति को बैठक की अनुमति देना कई सवाल खड़े करता है। विश्वविद्यालय में सहायक निदेशक और रिसर्च ऑफिसर के आठ पदों पर भर्ती करने के लिए कुलपति ने एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रखा है। अपने तीन साल के कार्यकाल में प्रोफेसर और अन्य पदों पर सौ से ज्यादा विवादास्पद नियुक्तियां करने के बाद भी सत्ता की सह की वजह से कोई उनका बाल भी बांका नहीं कर पाया है। कुलाधिपति की तरफ़ से आख़री तीन महीनों में नीतिगत फैसले ना लेने के निर्देश हवा-हवाई साबित हुए हैं। उल्टा कुलपति ने कुलाधिपति को भी अपने गणित में फिट कर लिया है। अब कुलपति के राजनीतिक प्रभाव के चलते कुलाधिपति ने भी पाला बदल लिया है।

विवि में व्याप्त भ्रष्टाचार और मनमानी के खिलाफ अब वहां के कर्मचारियों और शिक्षकों ने आंदोलन की राह पकड़ ली है। प्रदर्शकारियों का नेतृत्व शिक्षके नेता डॉ भूपेन सिंह, डॉ राजेंद्र कैडा. डॉ ममता कुमारी, डॉ कमल देवलाल, डॉ वीरेंद्र कुमार सिंह आदि कर रहे थे।

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