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और एक अनुशासित सिपाही की तरह त्रिवेन्द्र ने दिया इस्तीफा

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देहरादून। सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया है। इस्तीफा देने के बाद मीडिया से मुखातिब होते वक्त त्रिवेन्द्र रावत एक अनुशासित सिपाही की नजर आये। पार्टी आलाकमान के आदेश पर लेकिन, परन्तु से परे एक अनुशासित सिपाही की तरह राज्यपाल को अपना इस्तीफा दे दिया। उन्होंने साबित कर दिया कि वो एक सैनिक के बेटे है। अपने अफसर के आदेश पर एक सैनिक भी तो यही करता है। पार्टी हाइकमान ने उनके मुख्यमंत्रित्व के कार्यकाल के चार साल पूरे होने ये ऐन पहले इस्तीफा मांग दिया। लेकिन जब वे मीडिया के सामने आये उनके चेहरे पर मुख्यमंत्री पद के जाने का कोई मलाल नहीं दिखा।

मीडिया से मुखातिब होने के बाद जब त्रिवेन्द्र सिंह रावत सीएम आवास लौटे तो उनके कई समर्थक वहां मौजूद थे। वे अपने समर्थकों से मिले और समर्थकों के साथ ही लाॅन में बैठ गए। त्रिवेन्द्र रावत के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे से उनके समर्थक नाराज नजर आ रहे थे। इस पर सीएम त्रिवेन्द्र रावत थोड़ा भावुक तो दिखे। लेकिन उन्होंने उपस्थित समर्थकों से कहा कि मैं आपके बीच से ही आया हूं और आज आपके बीच में बैठा हुआ हूं। मुझे पार्टी हाईकमान ने कहा कि अब प्रदेश की बागडोर किसी और को देनी चाहिए तो मैने एक अनुशासित कार्यकर्ता के तौर पर उस आदेश का पालन किया है।

उनके मुख्यमत्रित्व काल के काम-काज की तरह उनका इस्तीफा भी ऐतिहासिक है। सीएम आवास पर उनके समर्थक का सुबह से ही तांता लगा है। त्रिवेन्द्र समर्थक इस बात को समझ नहीं पा रहे है कि आखिर चार साल का कार्यकाल पूरा होने से ऐन पहले पार्टी हाइकमान ने यह फैसला क्यो किया? आखिर मुख्यमंत्री के तौर पर उनका कार्य काल बेदाग रहा है।
सीएम आवास परिसर में हर कोई यही जवाब खोजता नजर आया कि त्रिवेंद्र सिंह ने इस्तीफा क्यों दिया? और पार्टी हाइकामन ने उनका इस्तीफा क्यों लिया? लेकिन अभी तक उनके समर्थकों का इसका जवाब नहीं मिल पाया है। देर शाम तक सीएम आवास पर त्रिवेन्द्र समर्थकों के आने का सिलसिला बदस्तूर जारी है।

फिलहाल सच्चाई यही है कि उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया हैं। उनका कार्यकाल ऐतिहासिक और साहसिक फैसलों के याद किया जाएगा। जब भी गैरसैंण की बात आएगी तो त्रिवेन्द्र रावत के कार्यकाल को याद किया जाएगा। अटल आयुष्मान योजना, महिलाओं को पैतृक सम्पत्ति पर साझेदार, मुख्यमंत्री घस्यारी योजना जैसे फैसले उत्तराखण्ड के विकास में मील का पत्थर साबित होगे हैं।

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