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सीएम से मिली आशा वर्कर्स, राज्य कर्मचारी का दर्जा देने की रखी मांग

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देहरादून। आशा वर्करों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा और न्यूनतम 21 हजार वेतन लागू करने, जब तक मासिक वेतन और कर्मचारी का दर्जा नहीं मिलता तब तक आशाओं को भी अन्य स्कीम वर्कर्स की तरह मासिक मानदेय फिक्स किया करने, सभी आशाओं को सेवानिवृत्त होने पर पेंशन का प्रावधान किया करने, कोविड कार्य में लगी सभी आशा वर्करों कोरोना ड्यूटी की शुरुआत से 10 हजार रू० मासिक कोरोना-भत्ता भुगतान देने, स्वास्थ्य बीमा, दुर्घटना बीमा समेत बारह सूत्रीय मांगों को लेकर 2 अगस्त से चल रही हड़ताल के तहत ऐक्टू से संबद्ध उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन व सीटू से जुड़ी उत्तराखंड आशा स्वास्थ्य कार्यकत्री यूनियन ने हड़ताल के नौवें दिन भी धरना प्रदर्शन जारी रखा।

9 अगस्त को देर शाम उत्तराखंड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन (ऐक्टू) का ग्यारह सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल यूनियन की प्रदेश अध्यक्ष कमला कुंजवाल के नेतृत्व में उत्तराखंड के माननीय मुख्यमंत्री से देहरादून में मिला। वार्ता में ज्ञापन की हरेक मांग पर विस्तार से चर्चा हुई। उन्होंने आश्वासन दिया है कि जल्दी ही आशाओं के मानदेय व अन्य मांगों को लेकर फैसला लिया जायेगा लेकिन मुख्यमंत्री द्वारा कोई स्पष्ट घोषणा नहीं की गयी और लिखित रूप में भी कोई आश्वासन भी नहीं दिया है।
यूनियन के प्रतिनिधिमंडल ने घोषणा की है कि जिस दिन सरकार लिखित रूप में आशाओं के लिये सम्मानजनक मासिक मानदेय घोषित करेगी तभी हड़ताल खत्म करने के बारे में विचार किया जायेगा। तब तक आशाओं का अनिश्चितकालीन हड़ताल और धरना जारी रहेगा।

उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन ने कहा कि, आशाओं से काम लेने में तो सरकार बड़ी तत्परता दिखाती है और सारी बातचीत होने के बाद भी मासिक मानदेय का फैसला करने में इतनी देर क्यों लगा रही है यह समझ से परे है। यह आशाओं के प्रति सरकार की सोच को स्पष्ट उजागर कर देता है।

आशाओं को काम में झोंकने में सरकार गर्मी, जाड़ा, बरसात कुछ नहीं देखती और आशाएँ भी हर मौसम में अपनी सुरक्षा की परवाह किये बिना स्वास्थ्य विभाग के कार्यों में जुटी रहती हैं।इसलिए सरकार को ज्यादा देर न करके तुरंत आशाओं की माँगों को मानते हुए उनको मासिक वेतन और कर्मचारी का दर्जा देने की बात मान लेनी चाहिए।

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