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जल स्रोतों व झीलों को पुनर्जीवित करने हेतु ठोस योजनाओं तथा गम्भीर प्रयासों की आवश्यकताः राज्यपाल

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देहरादून। राज्यपाल ले ज गुरमीत सिंह (से नि) ने कहा कि क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग के इस चुनौतिपूर्ण समय में पूरे विश्व को उत्तराखण्ड के चिपको आन्दोलन से प्रेरणा लेनी चाहिये। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में राज्य के चिपको आन्दोलन तथा इसमें पर्वतीय महिलाओं की भूमिका सदैव प्रेरणादायक रहेगी। देवभूमि की पर्यावरणीय हितैषी संस्कृति एवं परम्पराएं पूरे विश्व के लिये अनुकरणीय है। राज्यपाल ने कहा कि वन भूमि क्षेत्र बढ़ाने के लिये कम्युनिटी बेस्ड मेनेजमेण्ट को बढ़ावा देना होगा। जल और जंगलों के बचाव के लिये मेकेनिज्म तैयार करना होगा। उन्होंने कहा कि यदि लोग समय से जागरूक न हुये तो पर्यावरण के अपमान का परिणाम सभी को सामूहिक रूप से भुगतना होगा। राज्यपाल ले ज गुरमीत (से नि) ने कहा कि उत्तराखण्ड देश को महत्वपूर्ण पर्यावरणीय सेवाएं प्रदान कर रहा है। राज्य का विशाल वन क्षेत्र, गंगा व यमुना नदियां इसकी अमूल्य धरोहर है। राज्यपाल ले ज गुरमीत सिंह बुधवार को वीडियो कान्फ्रेन्सिंग के माध्यम से जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय जल सुरक्षा एवं जलवायु परिवर्तन सम्मेलन 2021 को सम्बोधित कर रहे थे।

अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन को सम्बोधित करते हुये राज्यपाल ले ज गुरमीत सिंह (से नि) ने कहा कि हिमालय के जल स्रोतों व झीलों को पुनर्जीवित करने हेतु ठोस योजनाओं तथा गम्भीर प्रयासों की आवश्यकता है। राज्यपाल ने कहा कि युवाओं को इन्वायरमेंट वॉरियर्स के रूप में आगे आना होगा। वृक्षारोपण व जल संरक्षण के अभियान को महा अभियान बनाना होगा। विद्यार्थियों को पर्यावरणीय विषयों के अध्ययन व शोध के लिये अधिकाधिक प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन, जल संकट तथा पर्यावरणीय संकट से बचने के लिये कोई लघुकालीन उपाय नही है। इस दिशा में सरकार, प्रशासन, सामाजिक एवं गैर सरकारी संगठनों, समाज सेवियों, पर्यावरणविदों, वैज्ञानिकों, स्थानीय लोगों तथा व्यक्तिगत प्रयासों की सामूहिक भागीदारी आवश्यक है।

राज्यपाल ले ज गुरमीत सिंह (से नि) ने कहा कि नदियों के जल की गुणवत्ता का स्तर बनायें रखना भी एक बड़ी चुनौती बन गया है। हमें जल तंत्र के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना होगा। वाटर मेनेजमेंट इन्फ्रास्ट्रक्चर को विकसित किये जाने की जरूरत है। राज्यपाल ने हिमालय के ग्लेश्यिरों पर ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव पर भी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि हिमालयी ग्लेशियरों, पर्वतीय पारिस्थिकी तंत्र की सुरक्षा के लिये अब गम्भीर प्रयासों का समय आ गया है। पारिस्थिकी तंत्र के स्वास्थ्य की निरन्तर मॉनिटरिंग आवश्यक है। हिमालय, नदी तंत्रों तथा शहरीकरण में संतुलन बेहद जरूरी है।

गौरतलब है कि जल शक्ति मंत्रालय भारत सरकार के जल संसाधन, नदी विकास और गंगा सरंक्षण विभाग तथा ग्लोबल काउण्टर टेरेरिज्म काउसिल द्वारा तीन दिवसीय ‘‘अन्तर्राष्ट्रीय जल सुरक्षा तथा जलवायु परिवर्तन सम्मलेन-2021, 15 से 17 नवम्बर 2021 तक आयोजित किया गया। इसमें जीसीटीसी के चेयरमेन डा ए बी पाण्डया, पूर्व विदेश सचिव डा0 कंवल सिब्बल, पूर्व रक्षा सचिव डा0 शेखर दत्त, प्रतिष्ठित पर्यावरण विशेषज्ञो एवं अधिकारियों ने प्रतिभाग किया।

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