Home उत्तराखंड चुनावी सालः जब बात निकली है, तो दूर तलक जायगी

चुनावी सालः जब बात निकली है, तो दूर तलक जायगी

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रिपब्लिक डेस्क। उत्तराखण्ड में चुनावी साल की बेला चल रही है। प्रदेश में देश के बड़े राष्ट्रीय दल, भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस जोर-शोर से चुनावी तैयारी में जुट गये हैं। चुनाव के लिहाज से दोनों राजनीतिक दल अपने-अपने संगठनों का विस्तार कर रहे है।

कांग्रेस की तरफ से भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए खटीमा से परिवर्तन रैली का आगाज किया जा रहा है। वहीं श्रीनगर से सत्ता धारी दल भाजपा जन आशीर्वाद रैली निकाल जन-जन तक अपने विकास कार्यों का संदेश पहुंचा रही हैं।
नेताओं और कार्यकर्ताओं का एक पार्टी से दूसरी पार्टी में आने-जाने का खेल शुरू हो चला है। दूसरे दल मे शामिल होने वाले कार्यकर्ताओं का एक ही आरोप है पार्टी में उपेक्षा से आजिज आकर उन्होंने ये कदम उठाया है। फिलहाल अभी तक किसी बड़े नेता के दूसरे दल में शामिल की खबरे नहीं है। लेकिन जैसे-जैसे चुनाव का समय नजदीक आयेगा इस तरह के मामले देखने को मिलेंगे। इसपर चुनावी जानकारों का मानना है कि आने वाले समय में कांग्रेस के बड़े नेता भाजपा में और भाजपा के बड़े नेता कांग्रेस में शामिल की खबरें मिल सकती है। लेकिन प्रदेश के बड़े नेता शायद ही आम आदमी पार्टी शामिल हो, क्योंकि कर्नल अजय कोठियाल के सीएम उम्मीदवार घोषित करने के बाद बड़े नेताओं के आप में शामिल होने की संभावनाएं लगभग खत्म हो चुकी हैं।

चुनावी साल है, तो आरोप-प्रत्यारोप की रस्में भी हैं। राजनीतिक दल इन रस्मों को बड़ी शिद्दत के साथ निभा रहे हैं। हाल ही में कांग्रेस के बड़े नेता हरीश के पंच प्यारे वाले बयान पर सत्ताधारी दल जम कर भुनाने की कोशिश कर रही हैं। वहीं इसके जवाब में कांग्रेस नेता हरीश रावत ने अपने सोशल मीडिया हैडल के जरिये भाजपा नेताओं पर पटलवार किया है।

उन्होंने फेसबुक में लिखा है कि पिछले 2 दिन की अति व्यस्तता के बीच मैं उत्तराखंड के समाचारों की जानकारी नहीं ले पाया। पंज-प्यारे शब्द के उद्बोधन के लिए मेरी माफी के बावजूद भाजपा और भाजपा के कुछ नेताओं के बयानों को देखकर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। पंज प्यारे शब्द अति पवित्र, आदरणीय है और मैंने आदरयुक्त भाव से ही इस शब्द का उपयोग किया। अनादर शो करने के लिए इस शब्द का उपयोग मैंने कहीं भी नहीं किया और इस तथ्य को भी रुभाजपा व अकाली दल के लोग जानते हैं कि गुरु साहिबान के जो नाम हैं, उन नामों के साथ कई नामों का संबोधन है, बहुत सारे लोग नानक चंद, नानक, श्री गोविंद, श्री हरगोविंद आदि शब्दों का उपयोग करते हैं और भी दूसरे गुरुओं के नाम वाले शब्दों का उपयोग करते हैं, वो उनके आदर भाव का सूचक है, लोग अपने व्यवसायों के नाम भी कभी महापुरुषों के नाम पर रखते हैं, इसका अर्थ यह नहीं है कि वो अनादर करते हैं।

उन्होंने आगे लिखा है कि मेरे लिए पंज प्यारा शब्द अत्यधिक आदर युक्त शब्द है। चुनाव के वर्ष में कोई अनावश्यक राजनैतिक विवाद खड़ा न करे, इसलिए मैंने अपने उद्बोधन के लिए न केवल क्षमा मांगी, बल्कि इस शब्द के प्रयोग के लिए मैंने प्रायश्चित स्वरूप गुरु स्थान में झाड़ू लगाकर, कार सेवा करने का संकल्प भी व्यक्त किया।
उन्होंने भाजपा पर सवाल दागते हुए लिखा है कि मैं, भाजपा के दोस्तों से पूछना चाहता हूंँ नानकमत्ता-साहब में जहां कोई नंगे सर नहीं जाता है, गुरु ग्रंथ साहब के सामने किसने माथे पर मुकुट धारण किया? उस पवित्र स्थल में जहां गुरुवाणी गूंजती है, वहां गीत-संगीत, नाटक आदि के मनोरंजन जिसका सिख्खी से कोई वास्ता नहीं है, उसके आयोजक कौन थे? क्या जिस व्यक्ति ने मुकुट धारण किया था उन्होंने सिख संगतों से माफी मांगी? किसी गुरु स्थान पर जाकर झाड़ू लगाकर, जूते साफ कर प्रायश्चित किया? पंजाब में अकाली दल और भाजपा की मिली जुली सरकार थी, जब गुरु ग्रंथ साहब का अपमान हुआ था और उस अपमान के विरोध में आवाज उठाने वाले लोगों को गोली मारी गई थी, उस समय भी भाजपा-अकाली गठबंधन की सरकार थी, क्या रुप्रकाश-सिंह-बादल जी ने, सुखबीर सिंह बादल जी ने या भाजपा के श्री श्री किसी नेता ने उसके लिए सार्वजनिक माफी मांगी है?

उन्होंने कहा कि ये कांग्रेस है, जो कांग्रेस किसी का अनादर न करते हुए भी, अनजाने में भी अनादर हो रहा है तो उसके लिए क्षमा मांगने का बड़ा दिल रखती है। यदि भाजपा के दोस्तों हिम्मत है तो जिस व्यक्ति ने गुरु ग्रंथ साहब के सामने मुकुट धारण किया, जरा उनसे कहो कि वो माफी मांगे हरीश रावत के तरीके से, किसी गुरु स्थान में जाकर के झाड़ू लगाएं, गुरु ग्रंथ साहब के अपमान और उस अपमान के विरोध में आवाज उठा रहे लोगों को गोली मारने के कृत्य के लिए अपने नेताओं से कहें कि सार्वजनिक माफी मांगे।

उन्होंने चेतावनी देते हुए लिखा है कि मेरी विनम्रता को मेरी कमजोरी न समझा जाए, यह मेरी शक्ति है याद रखना और मैं बहुत विनम्रता से कह रहा हूंँ कि यह वही रुहरीश-रावत है जिसने नानकमत्ता साहब और रीठा साहब की, दोनों पवित्र स्थलों की सेवा की है। जिसने श्री हेमकुंड साहब हजारों-लाखों तीर्थयात्री पहुंच सकें, उसके लिये उसी प्राथमिकता पर मार्ग/सड़क निर्माण, सुविधाएं विस्तार का काम किया, जिस तर्ज पर श्री केदारनाथ जी की यात्रा को सुनिश्चित करने के लिए किया गया। यदि मुझे कुछ वक्त और मिल गया होता, घंघरिया से हेमकुंड साहब तक मैं, रोपवे लगाने के पवित्र कार्य को भी प्रारंभ कर दिया होता है। खैर यह मेरा रुमुख्यमंत्री के रूप में कर्तव्य था, मैंने अपना कर्तव्य निभाया है। मैंने कभी उसके लिए कुछ चाहत नहीं रखी है, जब आज मुझ पर अकारण प्रहार किया जा रहा है तो फिर मेरा दिल भी कुछ कहने को व्याकुल है। इसलिये आज मैं, सिख संगत व समाज के सामने इस बात को रख रहा हूंँ कि क्या मैंने उनके गुरु स्थानों की खिदमत में जब भी अवसर मिला कुछ कमी रखी है? और यदि नहीं रखी है तो जो लोग सिख के बाने में अपने रुराजनैतिक कर्तव्य के लिए पंज प्यारे शब्द के उद्बोधन के लिए मेरी निंदा करने में तुले हुए हैं, सिख समाज को आगे आना चाहिए और उन लोगों के इस राजनैतिक कुप्रयास की निंदा करनी चाहिये।

 

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