सीताराम बहुगुणा
प्रदेश के साथ साथ श्रीनगर में भी निकाय चुनाव के लिए औपचारिक चुनाव प्रचार की शुरुआत हो गई है। वैसे तो मैने सोचा था कि सोशल मीडिया में चुनावी समीकरणों पर बात नहीं करूंगा, क्योंकि मीठा मीठा ही सुनने का जमाना है। हकीकत कड़वी दवा है जो किसी को पसंद नहीं है। जिसके मन की न कहो वो नाराज हो जाता है। परंतु बहुत से मित्र लगातार पूछ रहे हैं कि चुनाव में क्या हो सकता है? मैं कोई भविष्यवेता तो नहीं हूं जो सटीक बात बता पाऊं, परंतु आंकड़ों और जमीनी हकीकत के आधार पर कुछ शुरुवाती बात कर रहा हूं जो चुनाव परिणाम का आधार हो सकते हैं।
40 वार्डों में फैले श्रीनगर नगर निगम में लगभग 30 हजार, मतदाता हैं। मेयर बनने के लिए पांच प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं।
60 से 65 प्रतिशत मतदान होने की संभावना है । मान कर चाहिए 18 से 20 हजार वोट पड़ेंगे।
मेरे हिसाब से मुकाबले में बने रहने के लिए हर प्रत्याशी को कम से कम चार हजार वोट लाने आवश्यक हैं। मतलब चार हजार से कम वोट पाने वाला प्रत्याशी किसी भी समीकरण के हिसाब से चुनाव नहीं जीत सकता है। ये बात तय है।
संगठन क्षमता, सत्ता और चुनावी तिकड़म भाजपा को मजबूत पार्टी बनाते हैं। इस हिसाब से उसकी उम्मीदवार आशा उपाध्याय अभी चार हजार वोट के आंकड़े से ठीक ठाक ऊपर नजर आ रही है। लेकिन शुरुवाती समीकरणों में भाजपा के लिए मुकाबला जितना आसान नजर आ रहा है हकीक़त में उतना आसान नहीं है। क्योंकि टिकट वितरण के तरीके से पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों में बहुत ज्यादा नाराजगी है। ये देखना महत्वपूर्ण होगा कि ये नाराजगी खाली बोलने की है या ये मत में भी व्यक्त होती है। इस पर भी चुनाव परिणाम निर्भर करेगा।
छोटा चुनाव है, पार्टी से ज्यादा व्यक्तिगत संबन्ध और प्रत्याशी की छवि चुनाव में महत्वपूर्ण रोल अदा करेगी। निर्दलीय आरती भंडारी भाजपा और पूनम तिवाड़ी कांग्रेस के वोट बैंक में ठीक ठाक सेंधमारी करती हुई नजर आ रही हैं। यहां मैं आरती भंडारी का रोल सभी प्रत्याशियों के लिए महत्वपूर्ण मानता हूं । यदि वह अच्छा प्रदर्शन करती हैं तो भाजपा के लिए मुश्किल होगी। क्योंकि धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति करने के कारण वह भाजपा को ठीक ठाक नुकसान पहुंचा सकती हैं। इससे मुकाबला चतुष्कोणीय बनेगा। जिसमें जीत किसी की भी हो सकती है।
श्रीनगर में कांग्रेस का अच्छा जनाधार है। विगत नगर पालिका चुनाव में उसे जीत भी मिल चुकी है। विधानसभा एवं लोकसभा चुनावों में कमजोर संगठन के बावजूद यहां बीजेपी को कड़ी टक्कर देती है। लेकिन इस बार कहानी कुछ उलट है। जैसा नुकसान आरती भंडारी भाजपा को कर रही हैं ठीक वैसा ही नुकसान निर्दलीय पूनम तिवाड़ी कांग्रेस प्रत्याशी मीना रावत को कर रही हैं। धरातल पर ऐसा नजर आ रहा है कि जैसे दोनों ही राष्ट्रीय दलों ने एक एक निर्दलीय उम्मीदवार को भी मैदान में उतार रखा है।
भाजपा के लिए जीत का मंत्र ये है कि आरती भंडारी से होने वाले नुकसान की भरपाई करना।
कांग्रेस प्रत्याशी मीना रावत के लिए लिए जीत का मंत्र ये है कि वह पार्टी के पारंपरिक वोट बैंक को बचाए रखे।
निर्दलीय पूनम तिवारी के लिए जीत का मंत्र ये है कि वह कांग्रेस के पारंपरिक वोट बैंक में ठीक ठाक सेंधमारी करे। टिकट वितरण की प्रक्रिया से नाराज भाजपा समर्थकों के ज्यादा से ज्यादा वोट पाने की कोशिश करे।
जबकि निर्दलीय आरती भंडारी की जीत का मंत्र ये है कि वह भाजपा पर बड़ा डेंट लगाने के साथ साथ कांग्रेस में भी भी घुसपैठ करें।
कुल मिलाकर मैं निर्दलीय आरती भंडारी को इस चुनाव की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी मानता हूँ। यदि उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया तो भाजपा का मुश्किल में आना तय है। फिर चारों में से कोई भी जीत सकता है।
वैसे चुनाव में अभी काफी समय है। बहुत से समीकरण बनेंगे बिगड़ेंगे। अभी किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी।