रिपब्लिक डेस्क। उत्तराखण्ड में आने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर दल-बदल का खेल भी शुरू हो गया है। भाजपा अभी तक तीन बिधायकों को अपने पाले में करने में कामयाब रही है। वहीं कांग्रेस ने पूर्व कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य को उनके विधायक पुत्र संजीव आर्य को कांग्रेस में शामिल कर भाजपा को बड़ा झटका दिया है।
सियासी दल के नेता भले ही विधायक-मंत्रियों को अपने पाले में कर बड़ी कामयाबी बता रही हो लेकिन इस दलबदल से राजनीतिक दलों में अंदरूनी सियासत गरमाने लगी हैं। जो आने वाले विधान सभा चुनावों में इन दलों के लिए बड़ी चुनौती पेश कर सकते हैं। आइये यहां उन विधान सभा सीटों में नजर डालते हैं जो दल-बदल के चलते कांग्रेस के लिए चुनौती बन सकते हैं।
नैनीताल विधान सभा सीटः मौजूदा समय में संजीव आर्य यहां से विधायक हैं। संजीव आर्य साल 2017 में यहां भाजपा के टिकट पर कांग्रेस की महिला कांग्रेस अध्यक्ष सरिता आर्य को शिकस्त देकर पहली मर्तबा विधानसभा पहुंचे थे। फिलहाल सरिता आर्य नैनीताल से विधानसभा की तैयारियों में जुटी हुई हैं। लेकिन यशपाल आर्य और संजीव आर्य के कांग्रेस में शामिल होने के बाद सरिता आर्य के लिए यहां टिकट मिलना अब आसान नहीं है।
यशपाल आर्य और संजीव आर्य के कांग्रेस में शामिल होने के बाद सरिता आर्य सहज नहीं नजर आ रही हैं। उन्होंने इस पर कड़ा रुख भी अख्तियार किया है। मीडिया के माध्यम से वे अपनी नाराजगी भी जाहिर कर चुकी हैं। सोशल मीडिया के जरिये इस पर वे अपनी टिप्पणी भी दे चुकी हैं। फिलहाल सरिता आर्य ने पार्टी हाईकमान पर भरोसा जताकर कहा है कि पार्टी हाईकमान उनके साथ न्याय करेगा।
बाजपुर विधान सभा सीटः इस सीट से पूर्व कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य मौजूदा समय में स्थानीय विधायक है। वे साल 2017 में कांग्रेस छोड़ भाजपा के टिकट पर यहां विधायक चुने गये थे। राजनीतिक जानकार बताते है कि पूर्व कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य साल 2017 में नैनीताल से अपने पुत्र संजीव आर्य के लिए टिकट चाहते थे। लेकिन संजीव आर्य को काग्रेस से टिकट ना मिलता देख उन्होंने उस दौरान भाजपा के पाले में चले गए थे। और दोनों पिता-पुत्र भाजपा के टिकट पर विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहे।
हाल ही मैं फिर पिता-पुत्र की जोड़ी ने कांग्रेस का हाथ पकड़ लिया है। जिसने बाजपुर में कांग्रेस की परिस्थितियां एकदम बदल दी है। यहां से विधायकी की तैयारी कर रही सुनीता टम्टा बाजवा भी पिता-पुत्र की जोड़ी के कांग्रेस में शामिल होने से काफी असहज नजर आती हैं। हाल ही कांग्रेस की परिवर्तन रैली के दौरान बाजपुर में ही जनसभा में कांग्रेस के उत्तराखण्ड प्रभारी देवेन्द्र यादव, नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह और दूसरे दिग्गज नेता विमला टम्टा के समर्थन में वोट मांग चुके हैं। लेकिन यशपाल आर्य के बाजपुर से चुनाव लड़ने ऐलान से अब यहां कांग्रेस में अंदरूनी घमासान होना तय माना जा रहा है।
सहसपुर विधान सभाः देहरादून की सहसपुर विधानसभा सीट कांग्रेस के लिए हमेशा से चुनौती रही है। पूर्व विधायक साधुराम के बाद यहां कांग्रेस एक अदद विधायकी के लिए तरस रही है। पिछले 15 सालों से यहां भाजपा के उम्मीदवार ही विधानसभा पहुंचे हैं। सहसपुर विधानसभा में स्थानीय उम्मीदवार हमेशा से ही एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है।
अभी हाल ही में सहसपुर से जुड़े स्थानीय कांग्रेसियों ने स्थानीय प्रत्याशी की एक बार फिर मांग उठाई है। इसको लेकर स्थानीय अखबारों में इसको लेकर बड़ी खबरे में छपी गई। वही कांग्रेस के निष्कासित नेता आजाद अली अपने ही अंदाज में नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह के खिलाफ मुखर हैं। उन्होंने प्रीतम सिंह पर पार्टी अध्यक्ष रहते मुस्लिम दलितों और वंचितों की उपेक्षा के गंभीर आरोप लगाए हैं।
अभी तक कांग्रेस हाईकमान यहां स्थानीय उम्मीदवार देने में नाकाम रही है। यहां पर साल 2012 में पार्टी के उम्मीदवार आर्येन्द शर्मा को पार्टी की अंदरूनी कलह के चलते हार का सामना करना पड़ा था। वहीं साल 2017 में आर्येन्द शर्मा के बगावत के बाद पार्टी के पैराशूट उम्मीदवार और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को मुंह की खानी पड़ी थी। बदली हुई परिस्थितियों के साथ आर्येन्द शर्मा एक बार फिर कांग्रेस में हैं और सहसपुर से विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे हुए हैं। लेकिन स्थानीय कांग्रेसी आर्येन्द्र शर्मा को स्थानीय उम्मीदवार मानने को राजी