नरेन्द्र सिंह की रिपोर्ट
कीर्तिनगर। कीर्तिनगर विकासखंड के हिसरियाखाल क्षेत्र स्थित बरसोला गांव में पारंपरिक व्रततोड़ पर्व को धूमधाम से मनाया गया। इस मौके पर पूर्व से चली आ रही परंपराओं का विधिविधान के साथ निर्वहन किया गया। शारदा देवी व भैरवनाथ का पूजन कर गांव व क्षेत्र की सुख-समृद्धि की कामना के साथ ही महिलाओं एवं पुरूषों ने रस्सा-कस्सी के खेल में भी बढ़-चढ़कर प्रतिभाग किया।
बरसोली गांव में प्राचीन समय से ही ईगास के अगले दिन द्वादशी तिथि को व्रततोड़ पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि जो भी इस आयोजन में श्रद्धा व सच्चे भाव से प्रतिभाग करता है उसके कष्टों का हरण हो जाता है। इसी के चलते क्षेत्र के लोगों को इस आयोजन का बेसब्री से इंतजार रहता है। पूर्व में क्षेत्र के करीब 12 से अधिक गांवों के लोग हिस्सा लेते थे। इसको लेकर लोगों में उत्साह भी रहता था। लेकिन पलायन की मार के चलते यह परंपरा अब कुछ गांवों के बीच ही सिमट कर रह गई है। बावजूद बरसोली गांव के लोग आज भी इस परंपरा को जीवित रखे हुए हैं।
ग्रामीण रेवाधर उनियाल, कुशलानंद बडोनी, मेधनीधर उनियाल का कहना है कि ईगास के दूसरे दिन द्वादशी तिथि पर सबसे पहले जंगल में निर्धारित स्थान से बबला घास लाई जाती है। जिससे करीब 50 मीटर से अधिक लंबा व मोटा रस्सा बनाया जाता है। रस्से को पुराने पानी के स्रोत(नौऊ) से नहलाया जाता है। उसके बाद रस्से के करीब 10 मीटर हिस्से को मां शारदा के मंदिर में लपेटा जाता है और मंदिर में हवन यज्ञ कर रोट-प्रसाद का भोग लगाया जाता है। हवन-पूजन के बाद शेष रस्से को गांव के चारों ओर घुमाकर इससे रस्सा-कस्सी खेल खेला जाता है। बाद में इस रस्से के टुकड़ों को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।