Home उत्तराखंड त्रिवेन्द्र सिंह रावतः संघ प्रचारक से लेकर मुख्यमंत्री बनने का असाधारण सफर

त्रिवेन्द्र सिंह रावतः संघ प्रचारक से लेकर मुख्यमंत्री बनने का असाधारण सफर

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देहरादून। पूर्व सीएम और डोईवाला विधायक त्रिवेन्द्र सिंह रावत को 20 दिसम्बर को जन्म दिवस है। उन्होंने अपने जन्म दिवस पर रक्तदान शिविर का आयोजन किया है। त्रिवेन्द्र रावत राजनीति के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण और समाज सेवा में भी जुटे हुए हैं। अक्सर उन्हें रक्तदान शिविर और पर्यावरण संरक्षण और वृक्षारोपण कार्यक्रमों में देखा जा सकता है। इसके अलावा उत्तराखण्ड के विकास को लेकर उनका एक बड़ा विजन है।

पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक से लेकर राज्य सरकार के मुखिया पद तक की यात्रा असाधारण रही है। विधानसभा चुनाव में 70 में से 57 सीटों पर विजय हासिल कर बीजेपी के जबरदस्त बहुमत के साथ सत्ता में आने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 18 मार्च, 2017 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी और चार साल का कार्यकाल पूरा होने से महज नौ दिन पहले उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा।

इस्तीफा देने के तत्काल बाद रावत ने एक संवाददाता सम्मेलन में अपने आप को एक साधारण पृष्ठभूमि का व्यक्ति बताया जिसने मुख्यमंत्री के रूप में उत्तराखंड की सेवा का मौका मिलने के बारे में कभी सोचा भी नहीं था। उन्होंने कहा कि केवल बीजेपी जैसी पार्टी में ही एक साधारण कार्यकर्ता शीर्ष स्थान तक पहुंच सकता है।

सीएम रहते रावत ने लिए कई महत्वपूर्ण फैसले

रावत फिलहाल प्रदेश की डोईवाला विधानसभा सीट से विधायक हैं जहां 2017 में उन्होंने 24869 मतों के अंतर से कांग्रेस उम्मीदवार को शिकस्त देकर शानदार विजय हासिल की। गैरसैंण को प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने, महिलाओं को उनके पतियों की पैतृक संपत्ति में खातादार बनाने जैसी योजनाएं रावत के कार्यकाल की महत्वपूर्ण उपलब्धियां रहीं। हाल ही में सहकारिता विभाग की घसियारी योजना के पीछे भी पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत का ही विजन था।

वे उच्च न्यायालय-नैनीताल में एक जनहित याचिका के माध्यम से ‘वन ट्रस्ट मेडिकल कॉलेज-हल्दवानी’ में शिक्षा शुल्क घटाकर 1.5 लाख रुपए करने के लिए सक्रिय गतिविधि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बने। कोर्ट ने राज्य के मूल अधिवास के लिए 70 प्रतिशत आरक्षण का निर्णय दिया। उन्होंने उत्तराखंड के किसानों का समर्थन करने के लिए प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर वर्ष में दो बार ‘कृषक महोत्सव’ का आयोजन किया जिसमें किसानों की समस्याओं को हल करने के लिए 18 विभागों के अधिकारी मौजूद थे। उन्होंने ‘अपना बाजार’ की स्थापना की है जहाँ किसान सीधे अपने उत्पाद बेच सकते हैं।

14 साल तक संघ के प्रचारक रहे रावत

पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार में कृषि मंत्री रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत का जन्म 20 दिसंबर, 1960 में पौड़ी जिले के खैरासैंण गांव में एक फौजी परिवार में हुआ था। उनके पिता प्रताप सिंह रावत गढ़वाल राइफल्स में थे और उन्होंने अपने गांव में मिटटी और गारे से बने एक स्कूल में अपनी शुरुआती शिक्षा प्राप्त की थी। पढाई में मध्यम दर्जे के होने के बावजूद त्रिवेंद्र को शुरू से ही सामाजिक-राजनीतिक मामलों में बहुत रूचि थी और केवल 19 वर्ष की उम्र में ही संघ की विचारधारा से प्रभावित होकर वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में शामिल हो गए। इसके छह साल बाद उन्हें देहरादून शहर के लिए संघ का प्रचारक नियुक्त किया गया और 14 साल तक संघ के साथ सक्रिय जुड़ाव के बाद उन्हें बीजेपी का संगठन मंत्री बनाया गया।

2002 में जीता था पहला विधानसभा चुनाव

उत्तराखंड अलग राज्य आंदोलन में भी रावत ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और कई बार गिरफ्तार भी हुए। वर्ष 2002 में पहला विधानसभा चुनाव उन्होंने डोईवाला से जीता। इसके बाद 2007 और 2017 में भी उन्होंने विधानसभा चुनाव जीता। उनके संगठनात्मक कौशल से प्रभावित होकर उन्हें 2013 में पार्टी के राष्ट्रीय सचिव की जिम्मेदारी दी गई। एक साल बाद उन्हें उत्तर प्रदेश में पार्टी मामलों का सहप्रभारी बनाया गया। उनके कार्य से प्रभावित होकर पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व का उन पर भरोसा बढ़ गया और यही उनके 2017 में प्रदेश के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचने में बहुत मददगार हुआ।

त्रिवेन्द्र का राजनीतिक सफरनामा

त्रिवेंद सिंह रावत का राजनीति का सफर 1979 में शुरू हुआ जब वे राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ से जुड़।
1981 तक उन्होंने संघ का प्रचार किया और इसमें लगन व मेहनत दिखाई।
1985 में त्रिवेंद रावत देहरादून नगर के प्रचारक बने।
1993 में सामाजिक एवं संघटन मंत्री बने।
1997 में उत्तराखंड प्रदेश के संघटन महामंत्री बनाये गये।
2002 में रावत डोईवाला वाला विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ें और जीत मिली।
2007 में फिर डोईवाला विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीते और बीजेपी के मंत्रीमंडल में कैबिनेट मंत्री के तौर पर कैबिनेट मंत्री बने।
2017 में डोईवाला क्षेत्र से चुनाव लड़े और विजयी हुए और विधायक दल के नेता के रूप चुन लिये गये।
उसके बाद 17 मार्च को उत्तराखंड के नव निर्वाचित मुख्यमंत्री बनाये गये।

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