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उत्तराखण्ड विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन चाहता है उपनलकर्मियों की समस्या का स्थाई समाधान

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देहरादून। इंटक से जुड़े उत्तराखण्ड विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन ने उपनल कर्मियों के वेतन बढ़ोतरी के सरकार के फैसले को नाकाफी बताया है। संगठन के प्रदेश अध्यक्ष विनोद कवि ने कहा कि मंत्रीमण्डल द्वारा उपनल संविदा कार्मिकों के वेतन बढोत्तरी के संबंध में निर्णय वर्षों से अल्प वेतन भोगी संविदा कर्मचारियों के लिये ये बढ़ोत्तरी तात्कालिक लाभ तो दे सकती है परंतु यह बढ़ोत्तरी किसी भी रूप में स्थाई समाधान नहीं है।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन वर्षों से उपनल संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण की मांग को उठाता आ रहा है परंतु राज्य सरकार द्वारा संगठन की मांग को अनसुना कर संविदा कर्मचारियों को जानबूझकर आंदोलन के लिए प्रेरित किया जा रहा है जो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड विद्युत अधिकारी कर्मचारी संयुक्त संघर्ष मोर्चा के साथ हुई कई दौर की वार्ताओं के दौरान कैबिनेट मंत्री डॉ हरक सिंह रावत तथा 05 अक्टूबर को मुख्यमंत्री की अद्यक्षता में ऊर्जा मंत्री, मुख्य सचिव, सचिव मुख्यमंत्री, सचिव ऊर्जा/वित्त की हुई बैठक में स्पष्ट रुप से द्वारा अवगत कराया गया था राज्य के विभिन्न विभागों में उपनल का माध्यम से कार्याेजित संविदा कर्मचारियों की समस्याओं के स्थाई समाधान हेतु विभिन्न बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए केबिनेट उप समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है, जिसे 12 अक्टूबर को होने वाली कैबिनेट की बैठक में रखा जाएगा। समिति की रिपोर्ट के संबंध में कैबिनेट मंत्री ने अवगत कराया था कि उपनल की कुल 5 श्रेणियों में से एक श्रेणी को समाप्त करते हुए 4 श्रेणियां की जा रही है जिनका वेतन रुपये 15000, 19000 22,000 तथा रुपये 40000 तक की बढ़ोतरी की सिफारिश की गई है।

इसके साथ ही वरिष्ठता को ध्यान में रखते हुए प्रतिवर्ष ₹500 का लाभ अलग से दिया जाएगा तथा हर वर्ष स्वतः ही वेतन बढ़ोतरी की भी सिफारिश की गई। परंतु दुर्भाग्य से जिस तरह का अप्रत्याशित निर्णय मंत्रीमंडल द्वारा लिया गया है स्पष्ट होता है कि कैबिनेट उप समिति की रिपोर्ट व सिफारिश को दरकिनार करते हुए राज्य की नौकरशाही द्वारा समस्त सदस्य मंत्रीमंडल को गुमराह करते हुए ऐसे प्रस्ताव को मंत्रिमंडल के समक्ष प्रस्तुत कर पास करवाया गया। जिसकी जानकारी संभवतः केबिनेट उपसमिति के सदस्यों को भी नहीं रही होगी इससे स्पष्ट होता है कि राज्य की नौकरशाही कितनी हावी है।

संगठन द्वारा पूर्व में भी इस बात को उठाया है कि उपनल कर्मचारियों के मामले में एक राज्य दो नियम नहीं चलेंगे जैसे (1) विधानसभा सचिवालय, उद्यान विभाग, आपदा प्रबंधन विभाग में 5 साल की सेवा वाले कर्मचारियों को विनियमितीकरण नियमावली के तहत नियमित किया गया है तो फिर अन्य विभागों में 10 से 15 सालों के संविदा कार्मिकों को क्यों नियमित नहीं किया गया।(2) निदेशालय सैनिक कल्याण विभाग, सिडकुल, स्वजल, उपाकालि, यूजेविएनएल, क्च्डन्, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय, उत्तराखंड स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, टिहरी विशेष क्षेत्र पर्यटन विकास प्राधिकरण इत्यादि विभागों में कार्यरत उपनल संविदा कर्मचारियों को शासनादेश से इतर नियमित वेतनमान महगाई भत्ते सहित दिया जा रहा है।

यह सूचना, सूचना के अधिकार अधिनियम -2005 के तहत मांगी गई थी इसलिए यह कहना गलत है कि उपनल के कर्मचारियों को नियमित नहीं किया जा सकता है अथवा समान वेतन नहीं दिया जा सकता है।

वर्षाे तक अल्प वेतन पर कार्य कराना श्रम कानूनों के तहत नदंपत लेबर प्रेक्टिस है, मा0 उच्चतम न्यायालय ने भी उमादेवी केस में 10 वर्ष से नियमित रूप से कार्यरत कर्मचारियों को नियमितीकरण का हकदार माना है, श्रम न्यायालय व उत्तराखंड उच्च न्यायालय भी उपनल संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण व समान वेतन दिए जाने के निर्णय दे चुका है जिसके विरुद्ध राज्य सरकार द्वारा अपील की है जिसे राज्य हित व औधोगिक शांति हित में यथाशीघ्र वापस लिया जाना चाहिए।

अतः उत्तराखण्ड विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन (इंटक) उत्तराखण्ड सरकार से मांग करता है कि राज्य सरकार स्थाई समाधान की दिशा में सकारात्मक कदम बढाये तथा विभिन्नि विभागों/निगमों में वर्षों से उपनल के माध्यम से कार्याेजित संविदा कार्मिकों के नियमितिकरण हेतु अन्य राज्यों (तेलंगाना, हिमांचल, हरियाणा, मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ राज्य) की तर्ज पर विनियमितिकरण नियमावली बनायें तथा उपनल के माध्यम से कार्याेेजित संविदा कार्मिकों को नियमित करें, स्थाई समाधान ही इस समस्या का हाल है।

 

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