सौरभ गुसांई
हरीश रावत कांग्रेस छोड़ेंगे या अब आराम करेंगे सवाल का जवाब में नए वर्ष नहीं इसी पुराने वर्ष में कर देता हूँ। जो सूत्र इसकी अटकलें लगा रहे हैं कि वे कांग्रेस छोड़ सकते हैं उन सूत्रों को आपस में बांध कर एक मजबूत नाडा मात्र बुना जा सकता है। उत्तराखंड में हरीश हैं तो कांग्रेस है इससे कोई इनकार नहीं कर सकता। अगल हेलीकॉप्टर ले कर भले उनके विरोधी ग्रुप के नेता कितने दौरे कर लें, प्रदेशभर में कितनी जनसभाएं कर खुद को पूरा प्रदेश का नेता घोषित करने के प्रयास कर लें पर जहां हरीश खड़े हो जाएं वहां अन्य सब खुद गौण हो जाते हैं। और जितना में हरीश रावत को अबतक जान पाया हूँ उनको मैं उन्हें शोसियल इंजीनियरिंग का बड़ा खिलाड़ी मानता हूं और उनके और अन्य नेताओं की डिजिटल फोलोविंग के ग्राफ पर बराबर नजर रखता रहता हूँ। क्योंकि वे एक गजब के कंटेंट क्रिएटर हैं तो मैं इसी क्रेयेटिविटी को उसका हिस्सा मानता हूं जिसपर कल से बबाल मचा है। मैंने सुबह हमेशा समाचार पत्र में हरीश रावत के ट्वीट या फ़ेसबुक पोस्ट से सम्बंधित एक खबर हमेशा पढ़ी है। वह मुझे लगभग रोजाना मिलती ही है। हालांकि जो बातें उन्होंने लिखी हैं कि उनके हाथ पांव बांधे जा रहे हैं, वह किस तरफ इशारे कर रहे हैं ये हर कोई अपने अनुसार आकलन कर रहे हैं। वह चाहे उनके मुख्यमंत्री काल के खास रणजीत रावत हों या उनके विरोधी ग्रुप के मुखिया कहे जाने वाले प्रीतम सिंह हों या हाली प्रभारी देवेन्द्र यादव।
पर ये सबको पता है हरीश रावत का केदरनाथ मन्दिर में अपने अंदाज में नाचना हो,पहाड़ों में अचानक बच्चों के साथ क्रिकेट खेलना हो,पहाड़ी उत्पादों को अपने अंदाज में बढ़ावा देने के प्रयास हों या राष्ट्रीय राजनीति से लेकर पंजाब और उत्तराखंड राज्य में अपनी भूमिका का निर्वहन करना हो,पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के जन्मदिन की शुभकामनाएं देने पहुंच जाना या उत्तराखंड क्रांति दल के काशी सिंह ऐरी और पुष्पेश त्रिपाठी को मिलने पहुंच जाना हो यह केवल हरीश ही कर सकते हैं। हरीश रावत के कई कार्यक्रमों को करीब में मैंने भी देखा है और उनका कभी कभी दिनभर का सिड्यूल भी देखा तो यही पाया कि इस उम्र में ऐसी गजब की फुर्ती किसी में है तो वह हरीश रावत ही हैं। हालांकि उनपर आरोप भी कई लगते रहे हैं पर आरोप प्रत्यारोप राजनीति का हिस्सा हैं और कोई दूध का धुला नहीं है इससे सब भिज्ञ हैं। प्रदेश अभी जिस हाल में है उसके जिम्मेदार सभी हैं, ऐसा नहीं कि उपलब्धि अभी अपने हिस्से और बदहाली दूसरे के हिस्से।
ऐसे समय में जब बहुत जल्द ही प्रदेश को चुनाव में जाना है और एक राजनैतिक दल का मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार वह भी जिसकी सरकार बनने के आंकलन लगाए जा रहे हों, वह अपना दल छोड़ दूसरे दल में जाने के सूत्र फैलाये जा रहे हों वह बात पचने योग्य नहीं है।
सौरभ गुसांई के फेसबुक से साभार